मेन स्ट्रीम मीडिया दबा रहा देश की हकीक़त
दुनिया भर से बहुत ज्यादा भारत में कुपोषण
मोदी सरकार की नीतियों से विकराल हुआ भूख-कुपोषण का संकट : ज्यां द्रेज़
गूगल से ली गई छायाचित्र
साल 2020 के हंगर इंडेक्स सर्वे में भारत की स्थिति पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों से भी पतली होने की रिपोर्ट के दो महीने बाद जारी हंगर वॉच और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के नतीजे भी भारत में भूख और कुपोषण की समस्या विकराल होने का दावा करते हैं. भारत की यह हालत क्यों है? क्या पूर्व की सरकारों में भी यही स्थिति थी? इस पर जाने-माने अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज कहा, भूख और कुपोषण इस देश में सबसे बड़ी चिंता होनी चाहिए, लेकिन यह है या नहीं यह बिल्कुल दूसरी बात है. जबकि, यह ज़रूर होना चाहिए था. केंद्र सरकार ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के छठे राउंड के आंकड़े जारी किए हैं. इससे पता चला कि पिछले चार-पांच साल में बच्चों के पोषण में कोई प्रोग्रेस नहीं हुआ है. मेन स्ट्रीम मीडिया में इसकी कोई चर्चा भी नहीं है. इस मुद्दे को बड़ा मुद्दा बनाया जाना ज़रूरी है. उन्होंने कहा, याद रखिए कि 2016 में भी हर तीन में से एक बच्चा अंडरवेट था. लगभग इतने ही बच्चों की लंबाई कम थी. दुनिया में देखें तो भारत में सबसे अधिक कुपोषण है. लेकिन, इस समस्या को दूर करने के लिए कितना काम और कितना ख़र्च हो रहा है, यह समझा जा सकता है. मुझे लगता है यह मुद्दा उठाया जाना चाहिए, तभी भारत की स्थिति ठीक हो सकेगी.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2020 के बीच बच्चों के कुपोषण के मामले में कोई प्रगति नहीं हुई. लॉकडाउन में यह हालत और ख़राब हुई होगी. मिड डे मील और स्वास्थ्य सुविधाएं कई जगहों पर बंद हुई हैं. हंगर वाच के सर्वे से पता चला है कि 76 फ़ीसदी लोग लॉकडाउन के कारण कम खा रहे हैं. इसका मतलब है कि हालत ख़राब हुई है. मोदी सरकार जब 2014 में आई, तो उन्होंने साल 2015 में अपने पहले ही बजट में मिड डे मील और आइसीडीएस का बजट कम कर दिया. आज भी केंद्र सरकार का बजट इन योजनाओं के लिए 2014 से कम है.
सबसे बड़ी समस्या है कि इस सरकार की विकास की समझ उल्टी है. विकास का मतलब केवल यह नहीं है कि जीडीपी बढ़ रहा है या लोगों की आय बढ़ रही है. यह आर्थिक वृद्धि है. लेकिन, आर्थिक वृद्धि और विकास में काफ़ी फर्क है. विकास का मतलब यह भी है कि न केवल प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है ,बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, लोकतंत्र, सामाजिक सुरक्षा की हालत में भी सुधार हो रहा है. अगर उद्देश्य केवल यह है कि भारत दुनिया में सुपर पावर बन जाए, हमारी इकोनॉमी पांच ट्रिलियन की हो जाए तो आप बच्चों पर ध्यान तो नहीं देंगे न. ऐसे में संपूर्ण विकास की बात कहां हो पाएगी. असली विकास यह है कि जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो. लेकिन, मोदी सरकार का यह उद्देश्य नहीं है.
एससी, एसटी समुदायों के साथ भेदभाव
भारत में कुपोषण इतना अधिक है, इसमें प्रगति नहीं दिख रही है. नेपाल
और दूसरे देशों से भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी इन देशों से ज़्यादा है. तब क्यों
इतनी कम प्रगति है. मुझे लगता है कि यहां असमानता और भेदभाव के कारण नुकसान हो रहा
है. मुझे लगता है कि अगर गांव में आंगनबाड़ी चलाना है और वहां ऊंची जाति के बच्चे
छोटी जातियों के बच्चों के साथ नहीं खाएंगे, तो आंगनबाड़ी कैसे चलेगा. यही हालत
स्वास्थ्य सुविधाओं में भी है. इन सभी जगहों पर जातीय और लैंगिक भेदभाव है. मुझे
लगता है कि सामाजिक क्षेत्र में भारत के पिछड़ेपन की मुख्य वजह इसी से संबंधित है.
हंगर वाच के ताजा सर्वे के मायने
हंगर वाच के सर्वे का सबसे बड़ा नतीजा
यह है कि लॉकडाउन का प्रभाव अभी भी कई परिवारों पर है. लोग कम खा रहे हैं. बच्चों
और मां-बाप की हालत और खराब हो रही है. हंगर वाच और एनएफएचएस के सर्वे दरअसल एक
वेक-अप कॉल हैं. लेकिन, दुख की
बात यह है कि न सरकार और न मेन स्ट्रीम मीडिया इस पर ध्यान दे रहा है.
सामाजिक
सुरक्षा और भोजन का सवाल
पिछले पांच-छह साल से आर्थिक नीति और
सामाजिक नीति में बड़ा गैप बन गया है. सामाजिक नीतियों को किनारे कर दिया गया है.
केंद्र सरकार ने सामाजिक नीति को पूरी तरह राज्य सरकारों के भरोसे छोड़ दिया है. 2006 और 2016 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े
देखेंगे, तो पता
चलेगा कि उस दौरान काफ़ी प्रगति हुई. चाहे स्वास्थ्य की बात करें या फिर शिक्षा की, उस दौर में पहली बार भारत में इतनी
तेजी से प्रगति हुई. इसका कारण यह था कि उस पीरियड में भारत में एक्टिव सोशल
पॉलिटिक्स की शुरुआत दिख रही थी. उसी दौरान नरेगा, खाद्य सुरक्षा कानून, मिड डे मील जैसी योजनाएं लाई गईं. इसके
साथ ही आइसीडीएस का विस्तार हुआ. मतलब तब सामाजिक और आर्थिक नीति का संतुलन दिख
रहा था. लेकिन, मौजूदा
सरकार में सामाजिक नीतियों को किनारे कर दिया गया है. उसका बजट भी कम किया गया है.
तो, इससे बड़ी
असमानता पैदा हुई है. नोटबंदी के बाद आर्थिक वृद्धि पर भी असर पड़ा है. इस असमानता
का नतीजा अब हमारे सामने है.@Nayak 1
The reality of the country is suppressing
the main stream media
Much malnutrition in India from all
over the world
Modi government's policies worsen
hunger-malnutrition: Jean Dreze
Photograph taken from Google
The results of the Hunger Watch and
National Family Health Survey, released two months after the report of India
being thinner than countries like Pakistan, Nepal and Bangladesh in the Hunger
Index Survey of 2020, also claim that the problem of hunger and malnutrition in
India is worsening. Huh. Why is this condition of India? Was the same situation
in previous governments? On this, well-known economist and social worker Jean
Dreze said, hunger and malnutrition should be the biggest concern in this
country, but whether it is or not it is another matter. Whereas, it must have
happened. The central government has released the data for the sixth round of
the National Family Health Survey. It showed that there has been no progress in
the nutrition of children in the last four-five years. There is no discussion
of this in main stream media. It is important to make this issue a big issue.
He said, remember that even in 2016, one out of every three children was
underweight. About the same number of children were short. India has the
highest malnutrition in the world. But, how much work and how much is being
done to overcome this problem, it can be understood. I think this issue should
be raised, only then will India's situation be corrected.
According to the report of the
National Family Health Survey, there was no progress in malnutrition of
children between 2016 and 2020. This condition would have worsened in the
lockdown. Mid-day meal and health facilities are closed at many places. A
survey by Hunger Watch has revealed that 76 percent people are eating less due
to lockdown. This means that the condition has deteriorated. When the Modi
government came in 2014, they reduced the budget of mid-day meal and ICDS in
their first budget in 2015. Even today, the budget of the central government is
less than 2014 for these schemes.
The biggest problem is that this
government's understanding of development is inverted. Development does not
just mean that GDP is increasing or people's income is increasing. This is
economic growth. But, there is a big difference between economic growth and
development. Development also means that not only the per capita income is
increasing, but the condition of health, education, democracy, social security
is also improving. If the aim is only that India becomes a super power in the
world, our economy becomes five trillion, then you will not pay attention to
the children or not. In such a situation, where will the matter of complete
development be possible. The real development is to improve the quality of
life. But, this is not the objective of the Modi government.
Discrimination with SC, ST communities
Malnutrition is so high in India, it is not showing progress. India has
higher per capita GDP than Nepal and other countries. Then why is there so
little progress. I think there is a loss here due to inequality and
discrimination. I think if Anganwadi is to be run in the village and upper
caste children will not eat there with children of small castes, then how will
Anganwadi run. The same condition is there in health facilities also. There is
racial and gender discrimination in all these places. I think the main reason
for India's backwardness in the social sector is related to this.
Hunger Watch's latest survey means
The biggest result of the Hunger Watch survey is that the effect of the
lockdown is still on many families. People are eating less. The condition of
children and parents is getting worse. Hunger Watch and NFHS surveys are
actually a wake-up call. But, sadly, neither the government nor the main stream
media is paying attention to it.
Social security and food question
For the last five-six years, there has been a huge gap in economic
policy and social policy. Social policies have been sidelined. The central
government has left social policy completely dependent on the state
governments. If we look at the figures of the National Family Health Survey of
2006 and 2016, then you will find that there was a lot of progress during that
time. Whether it was about health or education, for the first time in that
period, there was such rapid progress in India. The reason for this was that in
that period, the beginning of active social politics was seen in India. At the
same time schemes like NREGA, Food Security Act, Midday Meal were brought. With
this ICDS expanded. Meaning, then the balance of social and economic policy was
visible. However, social policies have been sidelined in the current
government. His budget has also been reduced. So, it has created a huge
disparity. Economic growth has also been affected after demonetisation. The
result of this inequality is now before us. @ Nayak 1
Thank you Google