मृत्यु भोज

0
*मृत्यु भोज का आयोजन गैरकानूनी हैं इसके आयोजन से  कुरीति को बढ़ावा मिलता हैं।* 

     मृत्यु भोज एक कुरीति के साथ बहुत बड़ी सामाजिक बुराई है।किसी भी जीव जंतु की मृत्यु पर हरेक प्राणी संवेदशील हो जाता है जो प्रकृति का नियम हैं,लेकिन मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि मनुष्य बुद्धिमान और सभ्य होते हुए भी असभ्यता का परिचय देते हुए असंवेदनशील होता जा रहा है जो वर्तमान परिपेक्ष में बहुत ही खेद का विषय है।
          इस कुरीति को बढ़ावा देनें में कुछ लोगों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष 
 से सम्बन्ध  दिखाई दे रहा है जैसे-
1,मृत्यु भोज का खर्च वहन करने वाला परिवार 
2, मृत्यु भोज का लुत्फ उठाने वाले लोग
3,मृत्यु भोज को सहमति और समर्थन देनें वाले लोग
4,पंच पटेलों का परम्परा पोषित कानून कायदा और फरमान
5, शिक्षित वर्ग ओर जागरूक लोगों का चिंतन मनन नही करना।
6, आम व्यक्ति में इस कुरीति को करने पर प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी होने की झूठी शान रखना
7 सरकार द्वारा गैर कानूनी धोषित करने और कड़े नियम लागू करने  के बावजूद भी बढ़ावा देने वालों की मौन सहमति बनी हुई हैं।
8, लोगों का पाखण्ड और अंधभक्ति से जुड़े रहना।
9, तथागत बुद्ध और बाबा साहेब के सिंद्धान्तों का अनुकरण करने वाले की संख्या नगण्य।
 10, अशिक्षा के कारण सामाजिक जागृति का अभाव।
11, लोगों का परम्पराओं को प्रार्थमिकता और मान्यता देना कुरीतियों को बढ़ावा मिलता हैं।
           असल में शिक्षित और आर्थिक सबल वर्ग की मति मारी गई है ,जो इस कुप्रथा को प्रोत्साहान देते आ रहे है। कहने को तो पढा लिखा बुद्धिजीवी है, लेकिन अंध विश्वास,पाखण्ड और आडम्बर से जकड़ा हुआ है जो परम्पराओं और समाजिक मान्यताओं के इर्द गिर्द ही उसका दिमाग चल रहा है।हम 21 वी सदी में हैं फिर भी सामाजिक सृजनात्मक सोच बहुत कमजोर हैं।
        समाज में कुरीतियों को बढ़ावा देनें में अशिक्षित लोगों की भागीदारी जितनी हैं उससे भी ज्यादा जिम्मेदारी शिक्षित और सिमर्थ लोगों की बनती है कि इस कुरीति को जल्दी से जल्दी बन्द किया जाना चाहिए। समय की पुकार है  की सभी लोगों को सामाजिक,आर्थिक,वैचारिक,राजनेतिक क्षेत्र में आगे बढ़ना है तो हर तरह से समझदार और जागरूक बनने के साथ उचित निर्णय करके समाज को आर्थिक हानि से बचाना पड़ेगा तथा कुरीति पर खर्च बन्द कर उस धन का निवेश शिक्षा या स्वरोजगार पर व्यय करना न्यायोचित होगा।
              हमें सबको अपनी सोच बदलनी पड़ेगी,नजरिया बदलना पड़ेगा, अपनी हानिकारक परम्पराओं को बदलना पड़ेगा, मानसिकता को बदलना पड़ेगा,विचारों में बदलाव करना पड़ेगा, सामाजिक कार्यकलापों में बदलाव करना पड़ेगा तब जाकर यह कुरीतियों पर नियंत्रण किया जा सकता है। तभी समाज में सकारात्मक सोच विकसित की जा सकती हैं। 
          किसी व्यक्ति के देहांत के बाद तिये, नवें,बाहरवें,पर गंगा थाली या प्रसादी, पल्ला,खेड़ा पट्टी,ओसर,मौसर, डांगड़ी रात  जागरण,नयात,खेड़ा इत्यादि मृत्यु भोज के ही रूप है।
          समाज का अग्रज व्यक्ति इस कुरीति को कम करने,बन्द करने और समाप्त करने के लिए  विभिन मौका परस्ती सदैव  उपदेश देते आये हैं । लेकिन जब उसी सज्जन के परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो वह व्यक्ति भी इस कुरीति का अनुकरण करके बड़ी शान और शौकत से आयोजन करता है सोच रखता है कि इसको बढ़ा चढ़कर करने से मेरी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ जाएगी लेकिन ऐसा कतई नही है वह समाज को पीछे धकेल रहा है। कानूनी दायरा बढ़ गया हैं  जनता को अपनी सोच को बदलना पड़ेगा तथा विराम देना चाहिए वरना समय को भरोसो कोनी कद पलटी मार जाएं। समय पर कानून का पालन करते हुए समय की नजाकत को समझना ही सबसे बड़ी समझदारी होगी।
      समाज में दोगली बातें कोई मायने नही रखती हमारी कथनी और करनी अलग नही होनी चाहिए ।
   अगर इस दीमक रूपी कुरीति को वास्तव में बंद करना है तो इसकी शुरुआत हमें मौका परस्ती अपने घर से ही करनी पड़ेगी तब जाकर कुछ सुधार की गुंजाइश बनती है।समाज में प्रेरणादायी वातावरण बनेगा।
        विशेषकर सभी समाज के युवाओं से मेरा विन्रम आह्वान है कि इस घिनोनी परम्परा को रोकने में वैचारिक क्रांति की शुरुआत कराकर अनुकरणीय कार्य में भागीदार बनकर अपनी समझदारी ओर जागरूकता का परिचय देते हुए अपनी भागीदारी सुनिचित करावें। आपका कृत्य मिल का पत्थर साबित हो सकता हैं।
      समाज के चिंतनशील और जागरूक बन्धु प्रतिज्ञा करें कि जो भी व्यक्ति मृत्यु भोज का आयोजन करता है । वहां जाना ही उसको बढ़ावा देना है। और जाना भी है तो सामान्य भोजन ही करना है मिष्ठान व्यंजन को स्वीकार करना ही मृत्युभोज का पक्षधर बनना ही हैं।
        मृत्यु भोज को बढ़ा चढ़ाकर करने वालों को नजर अंदाज करना जरूरी हो गया है उनकी उपेक्षा ही उनकी आंखें खोल सकती हैं।
       समाज को नई दिशा और दशा देनें वाले चिंतकों से युवा शक्ति से आह्वान है कि अपने बुद्धिबल का सदुपयोग करते हुए इस समस्या का  समाधान निकालने की कोशिश की जाय क्योंकि इसको बढ़ावा नही देना बल्कि पूर्ण बन्द करना है। इसी में सभी हित निहित हैं। एक जागरूक नागरिक सामाजिक चिंतक की होने के नाते हम सभी का फर्ज ओर जिम्मेदारी बनती हैं। कि इस सम्बंध में लाये गए कानून का पालन पूर्ण ईमानदारी से किया जाए जिससे इस कुरीति पर नियंत्रण किया जा सके । सभी सामाजिक चिन्तकों , विश्लेषको,संगठनों, का सृजनात्मक सहयोग और मार्ग दर्शन सदैव अपेक्षित हैं। 


Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)
To Top