आयशा:-जब बेटी मरती है...!

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आयशा की अपनी मां-बाप से आख़री बार बात की ऑडियो सुना अल्लाह ही जाने कैसी कैफ़ियत हुई है, सुसाईड वग़ैरह तो आयेदिन होता है लेकिन आयशा की बातें और मां बाप की तड़प कलेजा जैसे छलनी हो गया हो।
आयशा सिर्फ़ अकेली नहीं है, ऐसी लाखों आयशा हैं जो खुदकुशी नहीं कर पाती और वो खुद के दिल को खंडहर में तब्दील कर लेती हैं, आयशा की खुदकुशी के बाद हर कोई जहेज़ के ख़िलाफ़ लिख रहा है, हर कोई आयशा के साथ हमदर्दी का इज़हार कर रहा है, क्या आपको कोई ऐसा अबतक मिला है जो जहेज़ का हिमायती हो? नही, हर कोई ख़िलाफ़ है फिर जहेज़ लेने वाले क्या आसमान से नाज़िल होते हैं? जहेज़ लेने वाले आसमान से टपकते हैं?
हम सब मक्कार हैं, फ़रेबी हैं, झुटे हैं, हक़ीक़त तो ये है कि शादियों में वो हर कुछ मुसलमानों में होता है जिसका हम और आप सोशल मीडिया पर विरोध करते हैं, हर कोई बारात 200+ ले जाना चाहता है, हर कोई 25 चमचमाती स्कार्पियो बारात में ले जाना चाहता है, हर कोई जहेज़ में चम्मच से लेकर एयर कंडीशन तक चाहता है, इससे इंकार नही कि कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने इस्लाम और हुज़ूर अलैहिस्सलाम के तरीके को अपनाया है लेकिन वो अपवाद हैं, उनकी कोई गिनती नहीं, हां नाम-निहाद जहेज़ विरोधी सोशल मीडिया पर मेजॉरिटी में हैं लेकिन ज़मीन पर "0" हैं।
कोई अपनी बेटी को जिस्म के गोश्त की तरह खुद से क़रीब रखकर उसकी परवरिश करता है, उसके बाद उसकी शादी में घर/ज़मीन गिरवी रखकर, बैंक से लोन लेकर उसकी शादी करता है जहेज़ देता है और फिर उस बेटी के साथ ऐसा होता है!

आयशा तुम्हारा गुनहगार हमारा मुआशरा है, हमारी झूटी शान-ओ-शौकत और दिखावा है, यक़ीनन खुदकुशी इस्लाम में हराम है लेकिन आयशा ने ये इक़रार करते हुए ही खुदकुशी किया है। सोचिये वो बिटिया कितनी मजबूर होगी।

आयशा उस सुअर के तुख़्म की ख़ातिर ना सही अपने माँ बाप का तो ख़्याल की होती अपने वालिदैन की ख़ातिर तो ये फ़ैसला बदल सकती थी, दुःख है कि तुमने अपने वालिदैन को बहुत बड़े तकलीफ़ के ज़ंजीर में जकड़कर दुनिया से रुख़्सत हो गई।
अल्लाह तुम्हारी मग़फ़िरत फ़रमाये और हमारे ऐसे मुआशरे पर अल्लाह की लअनत हो जिसने तुम्हें मजबूर किया हराम मौत मरने पर।

Shahnawaz Ansari

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