भारत में नवजात बच्चों पर मौत का कहर, हर साल 5 लाख नवजात बच्चों की मौत

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भारत में नवजात बच्चों पर मौत का कहर
हर साल 5 लाख नवजात बच्चों की मौत
आज भले ही हमने चाँद पर पहुंचकर टेक्नोलॉजी साइंस के मामले में विश्व के अन्य देशों को लोहा मानने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन सच तो यही है कि मेडिकल साइंस सहित कई मामलों में आज भी अन्य देशों के मुकाबले कोसों दूर हैं। हाँ, अलबत्ता बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, हत्या-बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में वैश्विक स्तर पर अपनी नाकामियों का झंडा जरूर गाड़ दिया है। आईसीएमआर ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए भारत की विभत्स कर देने वाली तस्वीर को सामने ला दिया है। इस तस्वीर से बिल्कुल साफ हो चुका है कि हर साल देश में करीब पांच लाख नवजात शिशुओं की मौत उनके जन्म के 28 दिन के भीतर हो रही है। इसके बाद भी सरकारें भारत में विकास की गंगा बहाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। इस बात का खुलासा तब हुआ जब आईसीएमआर ने 25 अगस्त को अपनी रिपोर्ट जारी किया।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में हर साल लगभग 0.75 मिलियन नवजात शिशुओं की मृत्यु होती है जो दुनिया के किसी भी देश के लिए सबसे अधिक है। आईसीएमआर के अनुसार, 2014 में राष्ट्रीय स्तर पर नवजात मृत्यु दर 26 थी जो घटकर 20 रह गई है. हालांकि रिपोर्ट में बीते नौ साल में राष्ट्रीय स्तर पर सुधार होने की बात भी कही गई है। लेकिन 430 जिलों में अभी भी सुधार होना बाकी है. इसका मतलब है कि देश में नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़ों में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है।
आपको बताते चलें कि देश के 59 फीसदी जिलों में नवजात मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। इसकी रोकथाम के लिए नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अध्ययन करने का फैसला लिया है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि भारत में एक हजार नवजात शिशुओं पर करीब 20 की मौत हो रही है। इनमें 26 फीसदी मौतें जन्म के 24 घंटे के भीतर हो रही है। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात तो यह है कि कई राज्यों में मौत का यही आंकड़ा काफी अधिक है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचआईएमएस) के साल 2019-20 के आंकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में यह सबसे अधिक 63-63 फीसदी है।
आईसीएमआर के अनुसार, 2014 में राष्ट्रीय स्तर पर नवजात मृत्यु दर 26 थी जो घटकर 20 रह गई है। हालांकि बीते नौ साल में राष्ट्रीय स्तर पर कुछ सुधार जरूर हुआ है, लेकिन 430 जिलों में अभी भी सुधार होना बाकी है। जिन जिलों में स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है उनमें उत्तर प्रदेश के 18, मध्य प्रदेश के 13, ओडिशा के छः, राजस्थान के पांच, छत्तीसगढ़ और गुजरात के चार-चार और महाराष्ट्र के तीन जिले शामिल हैं। अगर 2030 तक मृत्यु दर को एक अंक यानी प्रति एक हजार शिशुओं के जन्म पर 10 से कम मौतें लानी हैं तो इन जिलों में बहुत सुधार करने होंगे जो केन्द्र व राज्य सरकारों के लिए टेढ़ी खीर साबित होगी।
एक बात स्पष्ट कर दूं कि सरकारें भले ही देश में विकास का ढिंढोरा पीट रही है। परन्तु चिकित्सा अध्ययनों से पता चलता है कि देश में मेडिकल साइंस में हालात कितने खराब हैं।
 हर साल नवजात शिशुओं की मौत कई कारणों से हो रही है। इनमें प्रमुख कारण समय से पहले जन्म और *जन्म के समय कम वजन (46.1 फीसदी), 
*जन्म के समय स्वासावरोध और जन्म आघात (13.5 फीसदी), 
*नवजात निमोनिया (11.3 फीसदी), 
*गैर संचारी रोग (8.4 फीसदी) और 
*सेप्सिस (5.7 फीसदी) है।
इसका मतलब यह हुआ कि भारत में जितनी रफ्तार से बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी बढ़ती जा रही है उससे कहीं कई गुना ज्यादा मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। नई दिल्ली स्थित लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के प्रो. सुमन कुमार के अनुसार हर साल देश में करीब पांच लाख नवजात शिशुओं की मौत उनके जन्म के 28 दिन के भीतर हो रही है। इसका मतलब साफ है कि केन्द्र व राज्य सरकारें देश में विकास कम विनाश ज्यादा करने का काम कर रही हैं।
जय मूलनिवासी
@Nayak 1

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