जैसा 'दोष', वैसी शरीर की प्रकृति । योगाभ्यास करते समय इन दोषों का ध्यान रखना योग

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आयुर्वेद में दोषों के आधार पर शरीर की प्रकृति तय की जाती है। जैसा 'दोष', वैसी शरीर की प्रकृति । योगाभ्यास करते समय इन दोषों का ध्यान रखना योग के लाभ को बढ़ाता है। तन, मन और आत्मा तीनों के स्तर पर संतुलन बनाने में मदद मिलती है। आयुर्वेद और योग के इस तालमेल को समझा रही हैं.
अच्छी सेहत, मन की शांति और आत्मिक उन्नति के बिना खुशहाली की हमारी खोज अधूरी है। योग के साथ आयुर्वेद का तालमेल हमें इसी खुशहाली के नजदीक ले जाता है। आयुर्वेद के तीन प्राथमिक दोषों- वात, पित्त और कफ को ध्यान में रखते हुए योग करना सेहत और संतुलन दोनों बढ़ावा देता है। अपने शरीर की प्रकृति को समझकर, व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप योग करना, योग से मिलने वाले लाभ को बढ़ाता है।

वात प्रधान
वात, वायु और आकाश दो तत्वों से बना है। यह गति और रचनात्मक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। वात प्रधान व्यक्तियों का शरीर दुबला, त्वचा शुष्क और स्वभाव मस्तमौला होता है। हालांकि, उन्हें चिंता, बेचैनी और पाचन संबंधी परेशानी भी रहती है। वात प्रधानता वाले लोगों को तन-मन का संतुलन बढ़ाने व शरीर के केंद्र को मजबूत बनाने वाले आसन करने चाहिए। ये आसन शरीर में स्थिर ऊर्जा की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। वात प्रधान व्यक्ति निम्न आसन करें-

पश्चिमोत्तानासनः यह आसन रीढ़ व पैर की हैमस्ट्रिंग मांसपेशियों पर दबाव डालता है। साथ ही तंत्रिका तंत्र को शांत व सहज करने में भी मदद मिलती है। ॥ सुप्त भद्रासनः यह आसन कूल्हों को खोलता है । कूल्हे व
जांघ की मांसपेशियों में लचीलापन लाता है। कूल्हों और पीठ के निचले हिस्से में तनाव दूर करने, शरीर को विश्राम देने और चिंता कम करने में मदद करता है।

• सेतु बंधासनः यह मुद्रा छाती को खोलती है और रीढ़ की हड्डी को विस्तार देती है, वात प्रकृति वाले लोगों के इसे नियमित करना अच्छा रहता है।
शवासनः यह अंतिम विश्राम मुद्रा वात तत्व की प्रधानता वाले लोगों के तन-मन को शांत करने, तनाव कम करने व गहन विश्राम को बढ़ावा देने का काम करती है। 
ध्यान रखें : वात प्रमुख व्यक्तियों को आसान आसनों से शुरू करते हुए अपनी गति बढ़ानी चाहिए। खड़े होने के शांत क्रम के बाद, लेटकर और बैठकर किए जाने वाले आसनों से लचीलापन और संतुलन बढ़ता है, साथ ही शरीर को विश्राम मिलता है। ये अभ्यास वात प्रकार के लोगों की बेचैन रहने की • प्रवृत्ति को संतुलित करने में मदद करते हैं। शांति और सहजता खोजने की भावना भी बढ़ती है।
प्राणायामः नाड़ी शोधन और पेट से सांस लेने जैसी धीमी और गहरी श्वास क्रियाएं वात की बेचैन प्रकृति को शांत करती हैं। तन व मन का संतुलन बढ़ता है। स्थिर व नियंत्रित श्वास पर ध्यान केंद्रित करना आंतरिक शांति बढ़ाता है।

पित्तप्रधान
पित्त, अग्नि और जल तत्वों से बना है। यह परिवर्तनकारी ऊर्जा और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। पित्त प्रधान व्यक्ति अकसर मध्यम कद काठी वाले होते हैं। त्वचा उष्ण और पाचन क्षमता मजबूत होती है। हालांकि, वे क्रोध, चिड़चिड़ापन और सूजन संबंधी समस्याओं से पीड़ित हो सकते हैं। पित्त संतुलित करने के लिए, उन्हें शरीर में शीतलता और शांति की भावना बढ़ाने वाले आसन करने चाहिए। कुछ आसन खासतौर पर शरीर की अतिरिक्त गर्मी को बाहर निकालने में मदद करते हैं। कुछ आसन हैं-
अर्ध पद्मासनः यह ध्यान मुद्रा विश्राम को बढ़ावा देती है, सूजन कम करती है। और तंत्रिका तंत्र को शांत करती है। पद्मासन भी कर सकते हैं।

त्रिकोणासनः यह मुद्रा संतुलन और विस्तार की भावना को बढ़ावा देते हुए शरीर को फैलाती और मजबूत करती है।

गोमुखासनः यह बैठकर किया जाने वाला आसन छाती, कंधों और कल्हों को खोलता है।
तनाव दूर करता है और शांति की भावना को बढ़ावा देता है। |
सर्वांगासन: यह आसन शरीर को ठंडा करने और मन को • शांत करने में मदद करता है। इस आसन के नियमित अभ्यास से एकाग्रता में भी सुधार होता है। ध्यान रखेंः पित्त प्रधान व्यक्ति संरचना व अनुशासन के आधार पर पनपते हैं। हठ योग और संरेखण-आधारित अनुक्रमों का अभ्यास करने से शरीर की ऊर्जा को दिशा देने, एकाग्रता में सुधार और लचीलेपन को बढ़ाने में मदद मिलती है। सहजता और संतुलन की भावना बढ़ती है।

शीतलता देने वाले प्राणायाम और क्रियाएं: शीतली और सीतकारी श्वास अभ्यास पित्त की उग्र ऊर्जा को शांत करने में मदद करते हैं। शरीर की गर्मी कम होती है। इसके अलावा जल नेति एक क्रिया है, जिसमें पानी से नासिका मार्ग को साफ करना शामिल है। ये तकनीकें पित्त व्यक्तियों के लिए अच्छे असर उत्पन्न करती हैं।

कफप्रधान
कफ में जल और पृथ्वी तत्व की प्रधानता होती है, जो स्थिरता, पोषण और सहनशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। कफ प्रधान व्यक्ति अकसर मजबूत कद- काठी, मुलायम त्वचा और शांत स्वभाव के होते हैं। हालांकि, उनमें वजन व सुस्ती बढ़ने का खतरा हो सकता है। कफ को संतुलित करने के लिए उन्हें खासतौर पर स्फूर्ति और ऊर्जा बढ़ाने वाले व्यायाम करने की सलाह दी जाती है।

कफ प्रधान लोगों को अपनी ऊर्जा सक्रिय करने और अपनी आत्मा की उन्नति के लिए गतिशील और उत्तेजक आसनों पर जोर देना चाहिए। निम्नलिखित आसन ऐसे व्यक्तियों में हल्कापन व स्फूर्ति की भावना पैदा करने में मदद करते हैं।

नौकासनः यह आसन कोर को मजबूत करता है
और पाचन तंत्र को सक्रिय करता है। इस आसन से सुस्ती दूर होती है और शरीर में ऊर्जा बढ़ती है।

उष्ट्रासनः पीछे की ओर झुककर किया जाने वाला यह आसन छाती को खोलता है। छाती के हिस्से को विस्तार देता है, जिससे कफ प्रधानता वाले चुस्ती-फुर्ती महसूस करते हैं।

वीरभद्रासनः यह संतुलन मुद्रा पैरों और कोर को मजबूत करती है। स्थिरता और एकाग्रता में सुधार होता है, साथ ही शरीर में गर्मी और ऊर्जा बढ़ती है।

हलासन: यह आसन थायरॉयड ग्रंथि को उत्तेजित करता है, परिसंचरण बढ़ाता है और शरीर को स्फूर्ति देता है। सुस्ती दूर करने और जीवन शक्ति को बढ़ावा देने में मदद करता है। 
ध्यान रखेंः कफ प्रधान लोगों को ऊर्जावान और निरंतर गतिविधियों से लाभ होता है। 
 सूर्यनमस्कर जैसे गतिशील अनुक्रमों का अभ्यास करने से चयापचय व वजन प्रबंधन को बढ़ावा मिलता है और शरीर को स्फूर्ति मिलती है। शरीर में रक्त संचार व ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।

स्फूर्ति देने वाले प्राणायाम: कफ प्रधान लोगों को जीवन शक्ति बढ़ाने, पाचन अग्नि को उत्तेजित करने और इंद्रियों को जाग्रत करने के लिए उज्जयी प्राणायाम और
कपालभाति का अभ्यास करना चाहिए। ये क्रियाएं इस प्रकृति के लोगों द्वारा अनुभव किए जाने वाले भारीपन को कम करती हैं।
जय मूलनिवासी
@Nayak1

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