मा दीना भाना जी को जब पहली बार में मिली

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मा दीना भाना जी को जब पहली बार में मिली. मा दीना भाना एक सामान्य से दिखने वाले व्यक्ति नही सामाजिक ईमानदारी के धनी थे.
मा दीना भाना जी गांधीधाम- कच्छ गुजरात हमारे घर आए.बहोत सी सरल भाषा में उन्होंने कहा बेटी पापा कहा है ?कोई घर पर नही है??
हे ना..!में हु ना ! जय भीम
जय भीम बेटी!अच्छा और कोई ?
मेरी मम्मी है वो मेरे भाई बहन को स्कूल मे लेने गई है आप बैठे.
तब मेरे पापा कांतिभाई नेदरिया जी नोकरी पर गए थे.
 उनको बिठाया और पानी दीया.
मेरे मम्मी जब आए तो उन्होंने कहा ..जय भीम
आपके साहब कब आएंगे? साम को 6 आएंगे.
तब गांधीधाम के एक ही ट्रेन आती थी और 
आने वाले लोग कई बार हप्ते तक हमारे घर रुकते थे.पापा और मम्मी आने वाले कार्यक्रता को कोई तकलीफ न हो उसका पूरा ध्यान रखते थे.क्योंकि वो व्यक्ति हमारे हिस्से की लड़ाई फिल्ड में घूम कर लड़ रहे होते थे. मेरे पापा का कहना था.कोई भी व्यक्ति जब आपका घर का दरवाजा खटखटाता है. जय भीम बोलो
और क्या जवाब देता है उसके बाद ही अंदर आने दो.वो ही मेने किया.
जब पापा नही आए थे तब दीना भाना जी ने कहा बेटी यहां कोई मार्केट है.
मगर वो तो बहोत दूर है?आपको क्या चाहिए?वो तुमने देखा है?? हा!क्यों?
चलो आपको कुछ चाहिए तो हम चलते है..मुझे स्कूल जाना है..मेरे भाई और छोटी बहन को मम्मी स्कूल लेने गए है.वो आते ही होंगे.
मम्मी मेरे छोटे भाई और छोटी बहन को स्कूल से लेकर आए.मेरी मम्मी को जय भीम कहा !
मम्मी ने उनको जय भीम कहा. चाय दिया.


मा दीना भाना जी ने मम्मी से कहा आज तक मैं बहोत सारे लोगो के घर गया पर आपके बच्ची को देख कर में खुश हुआ हु.जब मेने उसे पूछा घर में कोई है ?
तो वो बोली में हूं ना.
बाकी किसी के घर जाता हु तो पहले बच्ची होती तो दरवाजा ही नही खोलती. में  और मा दीना भाना जी शॉपिंग सेंटर पर गए मैने उन्हे रास्ता दिखाया आप जिस रास्ते से आए है वो ही रास्ता है. बेटी कौन सी कक्षा में पढ़ती हो.8 वी में. अच्छा खूब मन लगाकर पढ़ना.ठीक है.मैं उन्हे जय भीम कहकर स्कूल बस में बैठ गई. 
मेरे घर में कोई भी बीड़ी सिगारेट पीने वाले नही था.पापा ने मुझे कहा निशा बेटी जाओ तो दो पैकेट सिगरेट और बीड़ी लेकर आओ. मुझे अच्छा नहीं लगा.
जब पान की दुकान पर गई तो पान की दुकान वाला बोला अरे तेरे पापा कब से बीड़ी सिगार पीने लगे??
नही अंकल मेरे पापा नही पीते.मेरे घर दादा आए हैं
उनके लिए है.बेटा अब तुमको नही आने का ठीक है.दादा को बोल देना।
जब घर पर जाकर दादा को कहा तो दादा ने पापा कहा बीड़ी आज से छोड़ दूंगा.मगर बेटी को आज के बाद इसे मेरे बीड़ी नही किताब लाने भेजना.
मैने बहोत संघर्ष किया है लोगो को बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के लिए जागृत करने ये ब्राह्मणों ने उन्हें मिटाने की बहोत कोशिश की है लेकिन जबतक हम जिंदा है अंबेडकर जी के विचार को मरने नही देंगे।
पापा ने मुझ से कहा ये कौन है पता है?
हा,कौन? दादा. आप जो मीटिंग लेने जाते है. वो दादा जी हैं.
मान्यवर कांशीराम जी और मान्यवर डी.के. खापर्डे साहब की जो हम केस्ट सुनते है ना. उनके दोस्त है.इन्होंने ही आपको जो 14 April को जो छुट्टी मिलती है न वो इनके कारण मिलती है बेटी.
इन्होंने हमारे समाज के पढे लिखे लोगो का संगठन खड़ा किया है और जो तुम बामसेफ बोलती हो इन्होंने बनाया है.
दादा दीना भाना जी ने  बाबासाहब डॉ भीमराव अंबेडकर जी का भाषण सुना था 1956 आगरा में।
"मुझे पढे लिखें लोगों ने धोका दिया'', अफसोस था ये उनके मन में।
ईमानदार के जीवन में, बदलाव को एक भाषण ही काफी था।
निरंतर कारवा आंदोलन का, में चलाऊंगा ये उन्होंने ठाना था।
जीवन का उद्देश बनाकर, घर-संसार को जो त्यागे थे।
‘बामसेफ' का निर्माण किया, वे एक संस्थापक दिनाभाना थे।।
बामसेफ संस्थापक सदस्य मान्यवर दिनाभाना जी के 14वें स्मृति दिवस पर विनम्र अभिवादन।
#महानिर्वाण_29_अगस्त_2009
🌹🌹🌹
जय भीम
#जय_मूलनिवासी 
@Nayak 1

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