सफाई कर्मी जातियों ने गाँधीजी को अपना मसीहा घोषित किया लेकिन गाँधीजी ने उनको ब्राह्मणों की आजादी के लिए इस्तेमाल किया।

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सफाई कर्मी जातियों ने गाँधीजी को अपना मसीहा घोषित किया लेकिन गाँधीजी ने उनको ब्राह्मणों की आजादी के लिए इस्तेमाल किया।

चर्चासत्र की अध्यक्षता करते हुए मा० वामन मेश्राम ने कहा कि "वाल्मीकि जातियों एवं अन्य अति पिछड़ी अनुसूचित जातियों को 55 साल की आजादी में धोखेबाजी के सिवा कुछ नहीं मिला " इस विषय के संदर्भ में सबसे पहले मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि यह विषय हमने चर्चा के लिए क्यों रखा है। इस अधिवेशन में बहुत सारे नये लोग हैं, उन लोगों को भी यह बात मालूम होनी चाहिए कि हम जो अलग-अलग विषय चर्चा के लिये रखते है उसका एक खास मकसद होता है। यह विषय किस संदर्भ में है, यह जानकारी मैं आपको बाद में दूँगा मगर ये विषय हम चर्चा में क्यों रखते है और ये क्यों रखा है ये बात साथियों आपको सबसे पहले बताना चाहूँगा क्योंकि हमारे लोगों का सारा काम ही निरुद्देश्य चलता रहता है। जो लोग निरुद्देश्य अपना काम करते रहते हैं, उन लोगों के पास अपना कोई मापदण्ड नहीं होता। जिनके पांस निश्चित मकसद होता है, उद्देश्य होता है, लक्ष्य होता है वे अपने मकसद की दिशा में नाप तौल कर सकते हैं। अगर किसी ने अपने लिए लक्ष्य ही नहीं रखा तो उसने कितने प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त किया उसका नाप तौल नहीं हो सकता। हर व्यक्ति जो भी वह काम करे, उस काम को करने के पीछे कोई न कोई निश्चित लक्ष्य, कोई न कोई उद्देश्य होना चाहिए। जब तक कोई उद्देश्य उसके सामने नहीं होगा यह पता करना सम्भव नहीं होगा कि हम उद्देश्य के कितने नजदीक पहुँचे हैं। इसलिए जो अलग-अलग विषय यहाँ चर्चा के लिए रखे गये हैं उनके पीछे एक खास पुर्वनिर्धारित उद्देश्य है। बामसेफ का यह 19 वाँ अधिवेशन है और इस 19 वें अधिवेशन की एक खासियत यह है कि अठारह अधिवेशन जिस तरह से संचालित किये गये उनसे भिन्न है। इसके विषयों का जो निर्धारण हुआ, उसका निर्धारण करने की एक नीति, एक रणनीति हमने बनायी है। वह नीति और रणनीति क्या है? इसके बारे में भी मैं आपको स्पष्ट कर दूँ कि ये जो अधिवेशन है यह अधिवेशन सामाजिक नेटवर्किंग के लिए समर्पित है। आगे मा० वामन मेश्राम ने कहा कि भौगोलिक नेटवर्किंग का कार्यक्रम हम लोग सन् 1999 से चला रहे हैं मगर वर्ष 2002 से हमने बामसेफ संगठन के सामने भौगोलिक नेटवर्किंग के साथ-साथ सामाजिक नेटवर्किंग की बात भी हमने चलाना शुरु कर दिया है।

हम पहले 85 प्रतिशत की बात किया करते थे। मगर 85 प्रतिशत लोगों को इकट्ठा करने का हमारे पास कोई कार्यक्रम नहीं था। अब 85 प्रतिशत की केवल सोच नहीं है अब 85 प्रतिशत का हमने इस साल कार्यक्रम लागू किया और उसका भव्य स्वरुप यह अधिवेशन है। यह अधिवेशन को हमने "सामाजिक नेटवर्किंग के लिये समर्पित अधिवेशन" घोषित किया है। क्योंकि बामसेफ किसी जाति विशेष का संगठन नहीं है। ब्राह्मणवाद द्वारा तोड़े गये जो लोग हैं। जिन लोगों को ब्राह्मणवाद ने तोड़ा और तोड़कर जिनके टुकड़े बनाये और टुकड़ें बनाकर जिनको गुलाम बनाया, जिनके साथ धोखेबाजी की और जिनका शोषण किया, उन तोड़े गये शोषित मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों का ये संगठन है। ब्राह्मणवाद द्वारा 85 प्रतिशत लोग तोड़े गये हैं तो यह उन सब 85 प्रतिशत लोगों का ही संगठन है। यह बात हम कहा करते थे परन्तु यह बात एक सोच थी। इस सोच को केवल सोच नहीं अब हमने सामाजिक नेटवर्किंग के तहत मूर्त रुप (Physical Form) देकर एक प्रभावी कार्यक्रम में तब्दील कर दिया है। अनुसूचित जाति, आदिवासी, अति पिछड़ी जातियाँ, पिछड़ा वर्ग और इनसे धर्मपरिवर्तित मूलनिवासी इन सब लोगों को इकट्ठा करने की जो सोच हमने बनाई थी उसे इस अधिवेशन के माध्यम से कार्यक्रम में तब्दील किया है। वाल्मीकि जातियों और अन्य अति पिछड़ी जातियों के साथ 55 सालों में जो धोखेबाजी हुई, उस पर ये विषय चर्चा के लिये बनाया गया है। हम सामाजिक नेटवर्किंग को पूरा करना चाहते हैं इसीलिए यह विषय चर्चा के लिए रखा है।

जो अनुसूचित जातियाँ हैं उनमें कुछ अनुसूचित जातियाँ अभी भी बहुत ज्यादा पिछड़ी हैं, उनमें बहुत ज्यादा पिछड़ी जो अनुसूचित जातियाँ हैं और सफाई का काम करने वाली जातियाँ हैं इन लोगों को भी उनका अपना हक अधिकार मिलना चाहिए। ये तभी मिलेगा जब उनको जगाया जाए, जगा कर संगठित किया जाए, संगठित करके ताकत पैदा की जाए। इसलिये सामाजिक नेटवर्किंग को पूरा करने के लिए यह एक विषय हमने रखा।

विषय को चर्चा के लिए रखने के पीछे दूसरा मकसद बताते हुए मा० वामन मेश्राम ने कहा कि विषय के तहत हम यह कह रहे है कि आजादी के 55 वर्षों में वाल्मीकि जातियों एवं अति पिछड़ी अनुसूचित जातियों को धोखेबाजी के अलावा कुछ नहीं मिला। इससे दूसरा सवाल खड़ा होता है कि क्या आजादी के पहले इनके साथ धोखेबाजी नहीं होती थी? तब भी होती थी। मगर आजादी का आन्दोलन जिन लोगों ने चलाया, उन लोगों ने आश्वासन दिया कि आजादी मिलेगी तो आपके साथ भी न्याय होगा। यह आश्वासन देकर ही क्रूर आर्य ब्राह्मणों ने इस तथाकथित आजादी के आन्दोलन में हमारे लाखों मूलनिवासियों को इस्तेमाल किया। मगर खेद है कि इस तथाकथित आजादी के बाद भी हमारे मूलनिवासी बहुजन समाज को धोखेबाजी के सिवाय कुछ नहीं मिला। इसी संदर्भ में यह विषय चर्चा के लिए रखा गया है।

जिन लोगों ने आजादी का आन्दोलन चलाया उन्होंने आश्वासन दिया था कि आजादी में उनके साथ भी न्याय होगा। जिन्होंने आश्वासन दिया था उस आश्वासन का क्या हुआ? धोखेबाजी के अलावा आजादी के बाद भी इनको कुछ नहीं मिला। इसीलिए यह विषय यहाँ रखा गया है। इसकी समीक्षा की जानी है। शासक जाति के लोग कहते थे कि अभी आजादी नहीं मिली है, इसलिए हम लोग आपको न्याय नहीं दे सकते हैं जब आजादी मिलंगी तो न्याय करेंगे। ऐसा उन्होंने कहा मगर वास्तव में हमारे साथ अन्याय ही किया, धोखेबाजी की। इसलिए अब आजादी के बाद इस बात की समीक्षा करना जरुरी है। इसलिए इसे चर्चा का विषय बनाते वक्त यह कहा गया है कि आजाद भारत के 55 वर्षों में धोखेबाजी के सिवाय इन लोगों को, इन जातियों को कुछ भी नहीं मिला।

विषय के संदर्भ में विस्तृत जानकारी देते हुए मा वामन मेश्राम ने कहा कि यह बात हम लोगों को बताना चाहते हैं, इसकी जानकारी देना चाहते हैं क्योंकि जिनके साथ धोखेबाजी हुई उन लोगों को धोखेबाजी का एहसास ही नहीं है। अरे एहसास तो बहुत दूर की बात है, उन लोगों को इस बात की जानकारी भी नहीं है। एहसास तो बहुत दूर की बात है। एहसास तो बाद में होगा पहले खबर तो होनी चाहिए कि उनके साथ धोखेबाजी हुई। जानकारी ही नहीं है कि उनके साथ धोखेबाजी हुई और आगे भी हो सकती है। अगर यह जगाने का काम नहीं करें तो आने वाले समय में भी उनके साथ धोखेबाजी हो सकती है। इसलिए इसके बारे में उनको खबर करना और एहसास पैदा करना जरुरी है ताकि वे लोग जागृत हो सकें, संगठित हो सकें और अपनी ताकत के आधार पर अपने हम और अपने अधिकार ले सकें। इसके लिए उनको तैयार करना है। यह विषय उनको जानकर बनाने के लिए रखा गया है।

ये जो वाल्मीकि जातियाँ हैं इस संदर्भ में उनको भी जानकारी होनी चाहिए। सफाई का काम करने वाली जो जातियाँ हैं उनको जानकारी होनी चाहिए, और जो जातियाँ सफाई का काम नहीं करती हैं उन लोगों को भी जानकारी होनी चाहिए क्योंकि उनको अपने ही दूसरे भाइयों के बारे में जानकारी न होना ये जो जोड़ने का अभियान चल रहा है इसके लिये बहुत बड़ी रुकावट है। जो जोड़ना चाहते है और जिनको जोड़ना चाहते हैं उनके बारे में उनके पास जानकारी होना बहुत जरुरी है। जानकारी शक्ति होती है। जानकारी शक्ति का स्रोत होती है, शक्ति का स्रोत कैसे होता है। उसको मैं एक उदाहरण देकर समझाना चाहता हूँ। आजादी के आन्दोलन में पाकिस्तान बनाने का आन्दोलन मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे। पाकिस्तान बनना चाहिए। मोहम्मद अली जिन्ना ये आन्दोलन चला रहे थे। वे टी०बी० के मरीज थे। वे एक्सपर्ट डॉक्टर के पास गये। एक्सपर्ट डॉक्टर ने उनका चैकअप (जाँच) किया और जाँच करके उनको बताया कि आश्चर्य है, आपको तो छः महीने पहली मर जाना चाहिए था। आप जिन्दा कैसे हैं? जिन्ना ने जवाब दिया कि पाकिस्तान लिये बगैर मरने वाला नहीं हूँ। अगर नेहरु व सरदार पटेल को मालूम हो गया होता अगर गाँधी को मालूम हो गया होता कि जिन्ना छः महीने के अन्छर जाने वाला है तो पाकिस्तान बनाने का कार्यक्रम छः महीने एक्सटेंशन हो जाता तो पाकिस्तान बनना सम्भव नहीं होता।

जानकारी/सूचना शक्ति का स्रोत होती है। मगर हमारे लोगों को अपने ही लोगों के बारे में कोई खबर नहीं है, कोई जानकारी नहीं है। हम ज्यादातर लोग अपने ही बारे में अनजान लोग हैं। हमारे दिमाग में दुनिया भर का कूड़ा कर्कट भस हुआ है, मगर अपने बारे में बहुत कम जानकारी हैं। वाल्मीकि जातियों की बात ले लो, ये वाल्मीकि जातियाँ, ये तो नॉर्थ-ईस्ट रीजन है, नॉर्थ वेस्ट रीजन है, पंजाब है, दिल्ली है, राजस्थान है, जम्मू है, चण्डीगढ़ है, हरियाणा है इन क्षेत्रों में इन सफाई का काम करने वाली जातियों को वाल्मीकि जाति या वाल्मीकि के नाम से जाना जाता है। यह नया-नया डवलपमेण्ट है। ये नाम भी इनको ब्राह्मणों ने ही दिया। ब्राह्मण हजारों वर्षों से हमारे लोगों को अलग-अलग नाम देते रहे। पहले हमारे लोगों को वोदों में यदि आप पढ़ोगे तो आपको पता चलेगा असुर, दैत्य, दानव, राक्षस ये वेदों में लिखा हुआ है। हमारे लोगों को उन्होंने ऐसा कहा है। बाद में इन्हीं लोगों ने अन्दर से व्यवस्था बनायी तो शूद्र घोषित कर दिया। शूद्रों के बाद शूद्रों का विभाजन किया और एक को अछूत बनाया, एक हो शूद्र ही बना कर रखा।

गाँधीजी आधुनिक भारत में आये तो उन्होंने जो अछूत थे उनको 'हरिजन' नाम दिया। आज एक अभियान और चल रहा है, जिन्होंने हजारों सालों में हमारे लोगों को कई नाम दिये अब वे हमारे लोगों को 'हिन्दू' का नाम भी दे रहे हैं। ये वे ही दे रहे हैं। हिन्दू का नाम भी वे ही दे रहे हैं। हजारों सालों से वे नाम देते रहे। हिन्दू का नाम देने वाले जो लोग हैं उनमें से ही कुछ लोगों को वे लोग वाल्मीकि भी कह रहे हैं, अपने इलाके में। मगर सफाई का काम करने वाली जो जातियाँ हैं वे सारे देश में केवल वाल्मीकि के नाम से नहीं जानी जाती। यह जानकारी होना बहुत जरुरी है। अगर आप आन्ध्र प्रदेश में जाओगे तो वहाँ 'रैली' है जो सफाई का काम करती हैं। गुजरात में कोई और जाति सफाई का काम करती है। महाराष्ट्र में कोई और जाति सफाई का काम करती है। बंगाल में कोई और जाति सफाई का काम करती है। हम यहाँ पटना में आये, हमने यहाँ पर सफाई का काम करने वाले लोग रखे हैं। हमने पूछा भाई कौन सी जाति के हो तो उन्होंने बताया 'डोम' हैं। इधर 'डोम' हैं जो सफाई का काम करते हैं। उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद में 'हेला' जाति है। वाराणसी में' डोम' है। डोमों का राज हुआ करता था ऐसा पुराणों में लिखा हुआ है। जिन डोमों का राज करता था वे वाराणसी में आज सफाई करते हैं।

हर राज्य में कोई न कोई अनुसूचित जाति, कोई न कोई अनुसूचित जनजाति ऐसी है जिनसे सफाई का काम लिया जाता है। इसलिए सफाई का काम करने वाली जो जातियाँ हैं, उन लोगों को ये जानना होगा कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग अनुसूचित जाति की एक जाति सफाई का काम करती है। यह जानना क्यों महत्वपूर्ण है? यह जानना इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि उन लोगों को पता चले कि यह एक योजनाबद्ध षड्यंत्र के तहत अलग-अलग राज्यों में हमारे लोगों को ऐसा व्यवसाय जबरन (By Force) दिया गया है। मजबूरी में ही हमारे लोगों ने ये काम करना स्वीकार किया। गुलाम लोगों ने ही ये काम करना स्वीकार किया जिनकी मानसिकता उन्होंने गुलाम बनायी। यह हमारे लोगों को जानना होगा। क्योंकि जानकारी से हम लोग जो अपना काम आगे बढ़ाना चाहते हैं, अलग-अलग राज्यों में किस तरीके से यह काम करना होगा, इसकी जानकारी, इसकी सूचना, इसके माध्यम से हमको उपलब्ध होती है कि अलग-अलग राज्यों में हमको अलग-अलग तरीकों से इस काम को अंजाम देना होगा और यह ख्याल हमेशा रखना होगा यह एक बहुत बड़ी गलत अवधारणा (मिस कन्सेप्शन) है क्योंकि हमने यहाँ वाल्मीकि जातियाँ लिखा हुआ है मगर कुछ लोग वाल्मीकि समाज कहते हैं। वाल्मीकि 'समाज' नहीं है। चमार' समाज' नहीं है। पासी 'समाज' नहीं है। कुर्मी 'समाज' नहीं है। यादव 'समाज' नहीं है। मुसहर 'समाज' नहीं है। अत: स्पष्ट है कि ये वाल्मीकि (भंगी), चमार, पासी, कुर्मी, यादव, मुसहर जातियों के नाम हैं न कि 'समाज' के नाम। 'समाज' मनुष्य की एक सकारात्मक अवधारणा है जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के साथ जोड़कर मानवीय विकास की प्रक्रिया का प्रारंभ करती है। इसके विपरीत 'जाति' समाज का सत्यानाश करके टुकड़े बनाने वाली एक नकारात्मक अवधारणा है। जाति ने समाज को तोड़ा। अगर 'जाति' ने 'समाज' को तोड़ा तो जाति समाज कैसे है? समाज शास्त्र की बहुत गहरी बात आप लोगों की जानकारी में होना चाहिए क्योंकि इनका उपयोग (एप्लीकेशन) करना होता है। इसलिए हमने यहाँ 'जाति' लिखा समाज नहीं। क्योंकि आप लिखते हो 'वाल्मीकि समाज' तो वाल्मीकि जाति को समाज मानने वाले अर्थात जाति को समाज मानने वाले जो लोग हैं वे समाज को तोड़ेंगे कैसे? क्यों खत्म करेंगे? समाज को तो, खत्म नहीं किया जा सकता मगर जाति को खत्म करना जरुरी है। 'समाज' को खत्म करना जरुरी नहीं है। 'समाज' तो बनाना पड़ेगा और जाति को खत्म करना होगा। अगर आप वाल्मीकि जाति को वाल्मीकि समाज कहेंगे तो फिर खत्म कैसे होगा? क्योंकि समाज को खत्म करने का काम तो नहीं किया जा सकता।

जो लोग 'वाल्मीकि जाति' को 'वाल्मीकि समाज' कहते हैं वे लोगों के अन्दर संस्कार पैदा करते हैं कि इसे खत्म करने का काम नहीं करना चाहिए। अनजाने में हम लोग अपने दुश्मनों का काम करते हैं और हमें पता भी नहीं चलता। ये जानना, समझना बहुत जरुरी है कि ये जातियाँ है समाज नहीं है। सफाई का काम करने वाली जो जातियाँ हैं ये जातियाँ अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से हैं और इसके बारे में अभी ठोस जानकारी (Consolidated Information) हमारे लोगों के पास उपलब्ध नहीं है। मगर जो लोग इन जातियों का कल्याण चाहते हैं उन लोगों को जानकारी इकट्ठी करनी होगी। हम इस दिशा में पहल करेंगे, कोशिश करेंगे कि किस-किस राज्य में कौन-कौन सी अनुसूचित जातियाँ हैं जो सफाई का काम करती हैं। इसकी एक निश्चित जानकारी करके एक पुस्तिका के रुप में प्रकाशित करेंगे ताकि हमारे लोगों को इसकी ठोस जानकारी हो सके।

दूसरी बात जो हम लोगों को समझनी होगी, क्योंकि यह भी एक बहुत महत्वपूर्ण बात है। जो लोग खास करके पंजाब, हरियाणा इस इलाके में सफाई का काम करने वाली जाति के जो पुराने नाम 'भंगी' या 'चूहड़ा' हुआ करता था उन लोगों को वाल्मीकि कहा जाता है यह जानकारी आप लोगों को होनी चाहिए। मुझे अमृतसर में अभी यह अनुभव हुआ। क्योंकि यह विचारणीय मुद्दा है इसलिए मैं आपको बता रहा हूँ। हमने अमृतसर में राज्य स्तर का एक सम्मेलन रखा था उसमें यह अनुभव हुआ कि मैंने जब 'चूहाड़ा' शब्द का प्रयोग किया तो दो-चार लोग उठ कर खड़े हो गये और नाराज होकर सम्मेलन से चले गये। मुझे किसी ने स्टेज पर बताया, मुझे समापन भी करना था, मैंने उस समय जवाब दिया कि भाई मैंने चूहड़ा शब्द इस्तेमाल किया 'भंगी' शब्द इस्तेमाल किया तो कुछ लोग नाराज हो गये, विरोध करने लगे, तो मैंने उस समय जवाब दिया था कि मैंने ये शब्द इस्तेमाल किया तो आपको गुस्सा आया। गुस्सा आया, यह अच्छी बात है। आपको गुस्सा आया, यह अच्छी बात है क्योंकि गुस्सा आने से आन्दोलन खड़ा होता है। गुस्सा आने से आन्दोलन खड़ा होता है और आन्दोलन खड़ा होने से मूलभूत समस्याओं का निराकरण होता है। समस्याओं की समाप्ति हो जाती है। मैं 'चूहड़ा' या 'भंगी' कहने की बजाय अगर बाल्मीकि कहूँगा तो क्या होगा 'बाल्मीकि' कहूँगा तो आप खुश हो जायेंगे। चूहड़ा और भंगी कहूँगा तो आपको गुस्सा आयेगा और 'बाल्मीकि' कहूँगा तो आप खुश हो जाएंगे। आपको गुस्सा नहीं आयेगा तो आन्दोलन खड़ा नहीं होगा। आन्दोलन खड़ा नहीं होगा तो समस्या जहाँ की तहाँ रहेगी। मगर आपको खुशी होगी। समस्या वैसी की वैसी रहेगी। समस्या का समाधान नहीं होगा। समस्या वैसी की वैसी रहेगी फिर भी आपको खुशी होगी। ये जो खुशी है इससे आपका सत्यानाश होता रहेगा और आपको पता भी नहीं चलेगा।,

ब्राह्मण लोग बहुत होशियार लोग हैं। गुजरात में एक आन्दोलन चल रहा है 'स्वाध्याय'। यहाँ अनुसूचित जाति के जो अछूत हैं उनको लोग 'भावपुत्र' कहते हैं। नाम बदल दिया। 'भावपुत्र' कहते हैं। मछली पकड़ने वाले जो लोग हैं उनको कहते हैं, 'सागर पुत्र'। मछली पकड़ने का धन्धा बंद नहीं हुआ। केवल नाम बदल दिया 'सागर पुत्र'। 'सागर पुत्र' कहोगे तो उनके अन्दर गर्व का भाव पैदा होगा। मछली पकड़ना और उसे मारना गर्व की बात है, गौरव की बात है, अगर मेरी आने वाली पीढ़ियाँ, बीस पीढ़ियाँ यही काम करती रहीं तो बहुत बढ़िया बात है। पुरानी पीढ़ियाँ तो हो गयीं खत्म, आगे भी होती रहेंगी। गर्व की बात है। गौरव की बात है-'सागर पुत्र'। अहमदाबाद में 'वाघरी' नाम की 'मोस्ट बैकवर्ड' ओबीसी की जाति है। मोस्ट बैकवर्ड-वाघरी। इनमें शिक्षा लगभग है ही नहीं। उन्होंने उनका नाम बदल दिया-'देवीपुत्र'। ये जो नाम बदलने का, नाम परिवर्तित करने का जो अभियान और आन्दोलन है ये बाबा साहब अम्बेडकर के समय में भी चल रहा था। 'महार' उनके अन्दर चोखामेला नामक संत पैदा हुए तो 'चोखामेला' लिखने लगे। चमार अपने आप को रविदासी लिखने लगे। परिवर्तन कुछ भी नहीं हुआ। जूता गाँठने का काम चालू है। नाम केवल रविदास हो गया। उसी तरह से 'भंगी' काम चालू ही है। मगर नाम बदल गया बाल्मीकि । 'वाल्मीकि' हो गये। घटियापन में गौरव आ गया। घटियापन में गौरव का भाव भर दिया गया। गौरव का भाव आ जाएगा तो घटिया काम भी हम मन लगा कर करेंगे और उससे निकलने की कोई बात नहीं सोचेंगे। यह एक षड्यंत्र है। इसलिए जो लोग ये षड्यंत्र करते हैं वे लोग तो जानते हैं कि जानबूझ कर वे षड्यंत्र कर रहे हैं। मगर जो लोग इसे स्वीकार करते हैं, अमल में लाते हैं उनको इसकी खबर भी नहीं, जानकारी भी नहीं होती और उनके साथ धोखेबाजी होती रहती है। इसलिए ये धोखेबाजी साथियों, उन लोगों को मालूम होनी चाहिए।
जिन्होंने आजादी के पहले आश्वासन दिया था कि आजादी मिलेगी तो आपके साथ न्याय होगा। गांधीजी ने भंगी जाति के लोगों को आश्वासन दिया था कि आजादी में आपके साथ न्याय होगा। भंगी जाति के लोगों ने गाँधी जी को अपना मसीहा घोषित कर दिया कि गांधीजी हमारे मसीहा हैं, हमारे महात्मा हैं। हमारे रहनुमा हैं। उन्होंने घोषित कर दिया, भंगी गांधीजी के साथ जुड़े। गांधीजी ब्राह्मणवाद के साथ जुड़े थे। हमारे लोग, भंगी लोग, हमारे भाई, गांधी जी के साथ जुड़े। गांधीजी ब्राह्मणवाद के साथ जुड़े थे। इस तरह हमारे लोग ब्राह्मणवाद के साथ जुड़े रहे। ब्राह्मणवाद के साथ जुड़े रहने से आजादी के बाद भी उनके साथ धोखेबाजी होती रही और उनको खबर भी नहीं हुई। क्योंकि ब्राह्मणवाद अज्ञानता पैदा करता है। केवल इग्नोरेंस पैदा नहीं करता बल्कि इसके लिये संगठित यानी कि संगठित अज्ञान (ऑरगेनाइज्ड इग्नोरेंस) पैदा करने के लिये प्रयास करता है, कोशिश करता है।

मैं पंजाब में जब भी जाता था तो मुझे वहाँ कहीं न कहीं 'जगराता' चलता दिखाई देता था। मैंने पूछा- भाई ये जगराता क्या होता है?" तो उन्होंने कहा लोग रात भर जागते रहते हैं। लोग जगाने का काम करते रहते हैं। भजन होता है। कीर्तन होता है। माता का भजन होता है। रातभर लोग जागते रहते हैं। इसको लोग जगराता कहते हैं।" मैंने उनसे एक सवाल पूछा "जो लोग रात भर जागते हैं वे दिन में क्या करते हैं? 'वे दिन में सो जाते हैं क्योंकि वे रात में जागे हुए होते हैं।" रात भर वे जागते रहे इसलिए कुछ भी नहीं किया। दिन भर वे सोते रहे इसलिए कुछ भी नहीं किया। और इस तरह से" मैंने कहा "इसका नाम तो 'सुलाता' होना चाहिए भाई, इसका नाम जगराता क्यों रखा? क्योंकि यह तो सुलाने का कार्यक्रम है-नशे की गोली दिये बगैर सुलाने का कार्यक्रम है।"

साथियो, ये सारे देश में जो कार्यक्रम चल रहे हैं सुलाने के, ये संगठित प्रयास हैं। इसलिए मैंने उसको कहा, आर्गेनाइज्ड इग्नोरेंस पैदा करने के कार्यक्रम हैं। एक होता है इग्नोरेंस और एक होता है इग्नोरेंस पैदा करने के लिये षड्यंत्र पूर्वक सारे देश भर में संगठित रुप से प्रयास करना। इस देश में ज्ञान फैलाने के लिये कोई प्रयास नहीं करता मगर अज्ञान फैलाने के लिए संगठित प्रयास हो रहे हैं।
सफाई का काम करने वाली जो जातियाँ हैं केवल उनके साथ ही यह धोखेबाजी नहीं हुई और कई जातियों के साथ भी धोखेबाजी हुई है। मगर एक खास बात यह है कि अनुसूचित जातियों में कुछ जातियाँ ऐसी हैं जिनकी किसी जिले में हजार की संख्या है, तो किसी जिले में संख्या है ही नहीं। किसी जिले में दस-पाँच हजार की जनसंख्या है और सारे प्रदेश में है ही नहीं। यानी कि जनसंख्या जिनकी एक प्रतिशत है, पाँच प्रतिशत है, आधार प्रतिशत है, पौन प्रतिशत है। एक प्रतिशत से भी नीचे की कई अनुसूचित जातियाँ हैं और क्योंकि लोकैसंख्या में हैड काउण्टिग होता है और हैड काउण्टिग में जनसंख्या का अनुपात कितना किस जाति का है उससे उसका हैड काउण्टिग में लोकतंत्र में महत्व निर्धारित होता है। इसलिए जिनकी जनसंख्या एक प्रतिशत से नीचे होती है उनका कोई नामलेवा नहीं है। उनका भी कल्याण होना चाहिए, उनका विकास होना चाहिए। उसके लिये कोई बात करने वाला नहीं है। सोचने वाला नहीं है। इसके बारे में भी साथियो, बामसेफ के माध्यम से निश्चित रुप से कोशिश होनी चाहिए। इसलिए हमने एक सोच बनायी कि जिनकी जनसंख्या एक प्रतिशत से भी नीचे है उनके हित में भी प्रयास होना चाहिए, कॉन्शियसली कोशिश होनी चाहिए तो केवल सफाई कर्मचारी ही नहीं, सफाई कर्मचारियों से नीचे भी जो जातियाँ हैं, उनको पता भी नहीं है, सफाई कर्मचारियों को तो थोड़ा बहुत पता भी चल रहा है। ऐसी भी जातियाँ हैं जिनको कुछ भी पता नहीं है, कोई जानकारी ही नहीं है। जिसको लोग मुख्य प्रवाह बोलते हैं, नेशनल स्ट्रीम बोलते हैं। नेशनल स्ट्रीम तो छोड़ो वे किसी स्ट्रीम लाईन में ही नहीं हैं। मगर वे भी हमारे ही अपने लोग हैं। चूँकि लोकतंत्र में जनसंख्या का महत्व होता है किन्तु एक प्रतिशत से नीचे वालों का कोई नामलेवा ही नहीं है। इसलिये इनकी कोई जरुरत ही नहीं समझी जाती है। मोटी जनसंख्या वाली जाति को पकड़ लेंगे, अपना काम निकाल लेंगे। अपने को तो समीकरण बिठा करके, गोटी बिठा करके, सीटें जितवानी है। ये एक प्रतिशत वाले क्या कर लेंगे? मगर हमारा आन्दोलन सामाजिक है। इसलिए जिन वंचितों को कुछ भी नहीं मिला, जिनको तो ये भी पता नहीं होगा कि भारत आजाद हो गया है। वे तो सौ साल पहले भी ऐसे ही थे और आज भी ऐसे ही हैं और मान कर चल रहे हैं कि ये तो ब्राह्म का लिखा हुआ है। ये ऐसा ही रहेगा। इसमें कोई तब्दीली नहीं आयेगी। ऐसा सोच कर उन्होंने अपनी स्थिति के साथ समझौता कर लिया है। इसलिए साथियो, इन लोगों को भी हमने जोड़ने का अभियान बनाया है, सोचा है, इस पर भी आने वाले समय में हम लोग और ज्यादा कोशिश करेंगे। साथियो, जिन लोगों के साथ और सफाई कर्मियों के साथ धोखेबाजी हुई ये धोखेबाजी का केवल एक ही उदाहरण देना चाहूँगा कि आज भी सफाई का काम करने वाले लोगों के सिर के ऊपर, आजादी के 53 साल हो जाने के बाद भी, सिर के ऊपर टट्टी ढ़ोने का काम चल रहा है। कोई नाम लेवा नहीं है कि इसमें कोई परिवर्तन किया जाए। इसके लिये कुछ किया जाए कि कम से किम सिर पर मैला ढोने का काम बंद कर दिया जाए। यूनाइटेड नेशनल ऑर्गेनाइजेशन ने ये काम बंद करने का आदेश दिया। भारत सरकार ने इसको माना भी मगर भारत सरकार उस पर अमल करने का बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती। ये इतनी बड़ी धोखेबाजी है कि इस धोखेबाजी के बाद कोई और उदाहरण बताया जाना जरुरी नहीं।
साथियो, मैं दो बात बता कर अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा। आज अगर ये धोखेबाजी, कई तरह की धोखेबाजी चल रही है। ये लोग जो धोखेबाजी कर रहे हैं, कॉन्सीयसली धोखेबाजी करने का काम कर रहे हैं और उनको मालूम है कि हम धोखेबाजी का काम कर रहे हैं, ये उन लोगों की शैतानी है, जैसा कि कल्याणी जी ने उदाहरण दिया कि बाल्मीकि जी ने आँखे खोलीं, ये उन लोगों की शैतानी है जिन्होंने 55 साल से हमारे साथ धोखेबाजी की, उनको ऐसा लगता है कि कई बाल्मीकि जो सोये हुए हैं कहीं आँख न खोल लें। अगर बाल्मीकि जातियों की आँख बंद करनी है तो बाल्मीकि की आँख खोलनी होंगी। बाल्मीकि ऋषि की आँख खोल दो तो लोग बाल्मीकि मंदिर के सामने लाईन लगा कर खड़े हो जायेंगे, पूजा-अर्चना करना शुरु कर देंगे, भजन कीर्तन करना शुरु कर देंगे और ये सोचना बंद कर देंगे कि किसने उनके साथ धोखेबाजी की? अगर ये सोचना शुरु करेंगे तो उनको कारण भी पता चलेगा और अगर कारण का पता हो गया तो वे कारण को खत्म करने का काम शुरु करेंगे इसलिए उन्होंने, जिन्होंने उनके साथ धोखेबाजी की उन लोगों ने वाल्मीकि की आँखें खोलीं और खोलने के बाद जो वाल्मीकि, वाल्मीकि के सामने खड़े होकर आरती या प्रार्थना कर रहे होंगे। उन्होंने आँखे बंद करके प्रार्थना की होगी, उनकी आँखे तो बंद हो गई। ये सूत्र मैं आपको बता रहा हूँ कि जो लोग धोखेबाजी में लगे हुए हैं वे लोग इस बात से सतर्क हैं कि इन लोगों को हमारी धोखेबाजी का पता न चल जाए। अगर धोखेबाजी का पता चल जाएगा तो खतरा पैदा होगा इसलिए इनको धोखेबाजी का पता नहीं चले इसके लिए इनका ध्यान हटाना चाहिए। ध्यान हटाने के लिए एक नहीं अनेक तरीके के कार्यक्रम एक साथ चल रहे हैं। एक साथ जो ये कार्यक्रम चल रहे हैं ये एक साथ चलने वाले कार्यक्रम हमारे लोगों को संगठित षड्यंत्र के दलदल में फँसाने के लिए हो रहे हैं। साथियो, ऐसे में हम लोगों को क्या करना होगा? यह सब तो हो ही रहा है मगर हमको क्या करना होगा? हमको वाल्मीकि अर्थात सफाई का काम करने वाली जातियों और अति पिछड़ी अनुसूचित जातियों को क्या करना चाहिए, बामसेफ के लोगों को चाहिए कि उनको जगाने का काम करें। संगठित करने का काम करें। उनको एक बात समझायी जाए कि ये जो मसला है वह ब्राह्मणवाद का परिणाम है, और ब्राह्मणवाद केवल अमृतसर या पंजाब में ही नहीं है, ये देश भर में है। इसलिए लड़ाई, पंजाब में, चण्डीगढ़ में या अमृतसर में लड़ने से ही ये मसला हर होने वाला नहीं है। अगर यह मसला हल करना है तो देशव्यापी आन्दोलन खड़ा करना होगा। देशव्यापी आन्दोलन खड़ा किये बगैर अगर यह काम किया जायेगा तो यह काम बिल्कुल होने वाला नहीं है, बिल्कुल सम्भव नहीं है। इसलिए उन लोगों को जगा कर देशव्यापी आन्दोलन के साथ जोड़ा जाए। बामसेफ के कार्यकर्ताओं को यह काम करना चाहिए। यह दृष्टिकोण विकसित करने का काम है। यह दूरदृष्टि विकसित करने का काम है। यह निम्न स्तर पर मसला हल होने वाला नहीं है। बाबा साहेब अम्बेडकर अपने लोगों को कहा करते थे-"जाओ अपनी दरो-दीवार पर लिख दो कि तुम्हें इस देश की शासनकर्ता जमात बनाना है।"

लोगों ने देखा कि बाबा साहेब ने जो लिखने के लिए कहा है उसे लिखने के लिए हमारे पास दीवार ही नहीं है। बाबा साहेब अम्बेडकर भी यह बात जानते थे कि हमारे लोगों के पास दीवार ही नहीं है वो बात कही। क्यों कही? क्योंकि बाबा साहेब अम्बेडकर अपने लोगों का दृष्टिकोण विस्तृत करना चाहते थे। क्योंकि जब तक लोगों का 'विजन' बड़ा नहीं होता। तब तक वो बड़ा काम नहीं कर सकते। छोटे लोग बड़ा काम तभी कर सकते हैं जब उनके सामने कोई बड़ा मकसद हो। अगर बड़ा मकसद नहीं हो तो वे कभी भी बड़ा काम नहीं कर सकते। छोटे काम में आप लाख काम करते रहो किसी मूलभूत समस्या का समाधान नहीं होगा। यह बात साथियों हमको ध्यान में रखनी होगी। बामसेफ के लोगों को ख्याल में रखना होगा और यह विजन यह दृष्टि विकसित करनी होगी तब जाकर यह राष्ट्रीय स्तर का आन्दोलन खड़ा होगा।
जय मूलनिवासी 

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