सत्यशोधक''किसी स्त्री का पति होना कोई बड़ी बात नहीं ,लेकिन उस स्त्री के जिंदगी का सर्वश्रेष्ठ पुरुष होना खास बात है।👸🏻

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''सत्यशोधक''
किसी स्त्री का पति होना कोई बड़ी बात नहीं ,
लेकिन उस स्त्री के जिंदगी का सर्वश्रेष्ठ पुरुष होना खास बात है।👸🏻


अगर सावित्री को बच्चा नहीं हो रहा तो इसमें सिर्फ सावित्री का दोष नही,मेरे मैं भी दोष हो सकता है.आप मेरी दूसरी शादी करना चाहते हो.मगर मैं चाहता हु मेरी नही सावित्री की शादी कराओ.दिल से सैल्यूट महात्मा राष्ट्रपिता ज्योतिबा फूले जिन्होंने कदम कदम पर माता सावित्री का साथ दिया.
यह फ़िल्म हिंदी भाषा मे होनी चाहिए फिर देखो देश मे कैसी क्रांति का माहौल होगा🔥

सामाजिक क्रान्ति के आन्दोलन का नेतृत्व करने के लिए दूर-दृष्टि तथा साहस यह दो मौलिक गुण आवश्यक है। राष्ट्रपिता फुले इन दोनो गुणों से सम्पन्न थे। उन्होंने न केवल ब्राह्मणी समाज व्यवस्था, बनाम हिन्दू धर्म व्यवस्था, बनाम जाति व्यवस्था के विरूद्व विद्रोह किया, किन्तु ब्राह्मणी धर्मशास्त्रों की सत्यता को चुनौती दी, जिससे यह समाज व्यवस्था निर्माण होती है। उन्होंने ब्राह्मणों को इस बात के लिए दोष दिया कि उन्होंने अपनी श्रेष्ठता को बनाये रखने के लिए तथा शूद्र अतिशूद्र पर अपना प्रभुत्व टिकाने के लिए ही, धर्म शास्त्रों के नाम पर, इन मनगढंत झूठी कहानियों की रचना की और इसलिए ही उन्होंने शूद्रो के शिक्षा का अधिकार नकारा ताकि वे इन धर्मशास्त्रों की असलीयत को और ब्राह्मणों ने उनके साथ जो धोखेबाजी की है उसे न जान सके। राष्ट्रपिता फुले ने कहा कि शूद्रों के विनाश का मूल कारण, उनमें व्याप्त अज्ञान है। इसलिए उन्होंने अज्ञान के विरूद्ध एक प्रकार से जेहाद छेड़ा था और शूद्रों की शिक्षा पर ज्यादा बल दिया था। इस संदर्भ में, उनकी निम्नलिखित कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। राष्ट्रपिता फुले कहते हैं:-


"विद्या के अभाव में मती (सोचने-समझने की शक्ति) नष्ट हुई। मती के अभाव में नीति नष्ट हुई। नीति के अभाव में गति (परिवर्तन शिलता) नष्ट हुई। गति के अभाव से वित्त (अर्थ व्यवस्था) नष्ट हुई और वित्त के अभाव से शूद्रों का पतन हुआ। अकेले अज्ञान के कारण ही यह सब कुछ हुआ।"

इसलिए राष्ट्रपिता फुले शूद्र-अतिशूद्रो के बहुजन समाज में व्याप्त अज्ञान तथा धर्माधता को दूर करके, उन्हें गुलामी की जंजीरों से मुक्त करना चाहते थे, और यही कारण है कि, उन्होंने अपने जमाने में बड़ी वीरता दिखाते हुए, इस समाज के लिए, सदियों से बंद ज्ञान के द्वार खोल दिये। राष्ट्रपिता फुले के आन्दोलन का लक्ष्य था, भारतीय समाज की पुर्नरचना करके समानता, न्याय और बंधु-भाव के आधार पर एक नये समाज व्यवथा का निर्माण। डॉ॰बाबासाहब अम्बेडकर ने, उन्हें संत कबीर और तथागत बुद्ध के साथ अपना गुरू माना था। वस्तुतः बाबासाहब ने एक बार ऐसा कहा था कि, "अगर इस धरती पर राष्ट्रपिता फुले जन्म नहीं लेते, तो अम्बेडकर भी निर्माण नहीं हो सकता था।" राष्ट्रपिता फुले के आन्दोलन को भारत की सामाजिक क्रान्ति के इतिहास में इतना विशेष स्थान है। 19 वीं सदी में इस दिशा में उन्होंने पथ प्रदर्शक प्रयास किये है और कदाचित इन्हीं कारणों से उनका जीवन चरित्र लेखक धनंजय कीर ने अपनी पुस्तक में उनका "भारतीय समाज क्रान्ति के प्रणेता" इन शब्दों में गौरव किया है।

जय मूलनिवासी 

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