ब्राह्मणों ने पहले हमे इंसान के स्तर से जानवर के स्तर तक गिराया और फिर हमारे साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया।भंगी जाति की निर्मिति मुसलमानों ने नहीं, बल्कि ब्राह्मणों ने की है।वामन मेश्राम(राष्ट्रीय अध्यक्ष-बामसेफ)

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भंगी जाति की निर्मिति मुसलमानों ने नहीं, बल्कि ब्राह्मणों ने की है।

ब्राह्मणवादी लोग वाल्मीकि जातियों में प्रचार करते हैं कि वाल्मीकि जातियों के लाचारी और गुलामी के लिए मुसलमान जिम्मेवार है, इसके परिणाम के तौर पर हमारे लोग • मुसलमान विरोधी हो जाते हैं और दुश्मन (ब्राह्मण) के साथ मिल जाते हैं। जिसके बाद वो बाबरी मस्जिद गिराते हैं, लेकिन हमारे लोग यह नहीं जानते कि इसके बाद जो राम मंदिर बनेगा हमें घंटा बजाने के लिए भी नहीं रखा जायेगा। इसके बारे में हम नहीं सोचते। कल्याण सिंह जो पिछड़ी जाति के उ०प्र० के मुख्यमंत्री थे। उनका बाबरी मस्जिद गिराने के लिए उपयोग किया और काम होने के बाद उन्हे निकाल दिया। ब्राह्मण मुसलमानों के खिलाफ हमारी ताकत उपयोग में लाता है। ब्राह्मण आज जिसे गोमाता कहता है और मुसलमानों से उसके कटाई का विरोध करता है वही ब्राह्मण पहले गाय को खाता था और उसमें भी पिंड का मांस तो उसके लिए आरक्षित रहता था। यह सब उन्हीं ग्रंथों में लिखा है। ब्राह्मण जब पहले के जमाने में राजा महाराजाओं के यहां यज्ञ होते थे, तो गाय और उनके बछड़े बक्षीस मांगते थे, ऐसा वेद और पुराण में लिखा है। आज ब्राह्मण ने रणनीति के आधार पर गोमांस खाना छोड़ दिया। लेकिन मुसलमानों ने चालू रखा इसके लिए ब्राह्मण उनका विरोध करते हैं। क्योंकि * इतना अच्छा खाना हमें नहीं मिलता तो हम दूसरों को भी खाने नहीं देंगे। जिससे काफी ताकत आती है। आज कांग्रेस गांधी के नाम पर और बीजेपी मुसलमान के नाम पर हमारी जाति का इस्तेमाल कर रहे हैं।
मुसलमान तो विदेशी थे, फिर उनको कैसे पता कि भंगी का काम इन्हीं संबंधित लोगों से करवाना है मुसलमान को यह बताने का काम ब्राह्मणों ने किया। क्योंकी वही लोग उनके मंत्रिमंडल में रहकर शासन और प्रशासन चलाते थे। मुसलमानों के पास सिर्फ सेना थी, प्रशासन चलाने के लिए दिमागी लोग नहीं थे। इससे साबित होता है की भंगी जाति की निर्मिती मुसलमानों ने नहीं बल्कि ब्राह्मणों ने की है। आज ब्राह्मण कहता है कि हम सारे हिन्दु हैं, लेकिन अधिकार का मामला आता है तो ब्राह्मण के अधिकार बाकि जाति को क्यों * नहीं है। अगर बीजेपी को हम हिन्दु नाम से चाहिए तो सिर्फ मुसलमान का घर जलाने के लिए, और अगर कांग्रेस को चाहिए तो सिर्फ उनकी पार्टी मजबूत करने के लिए। ५४ साल • की आजादी के बाद सारे निर्णय हमारे सामने हैं। साधारण आदमी को संगठन असाधारण • बनाता है। कांग्रेस बीजेपी से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि कांग्रेस छुपा दुश्मन है, जबकि बीजेपी • दिखाई देने वाला दुश्मन है। ये दोनों पार्टियां दिल्ली में मजबूत हैं जो हमारे समाज के टुकड़े करने में लगी रहती है। ब्राह्मणों ने हमें जातियों में तोड़ा और जाति के लोगों को संस्थाओं में तोड़ा। समाज को तैयार करन से अपने आप समाज की घटिया चीजे समाप्त हो जायेगी।

ब्राह्मणों ने पहले हमे इंसान के स्तर से जानवर के स्तर तक गिराया और फिर हमारे साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया
 यह सम्मेलन आयोजित करने का मकसद सिर्फ सम्मेलन लेना नहीं है, बल्कि इसका जो उद्देश्य है उसी दिशा में एक संदेश भेजना है। आज अम्बेडकरी और ब्राह्मणवादी विचारधारा में टकराव शुरू है। दो अलग-अलग विचारों में से कौन सा अच्छा है उसके Judgement करने की क्षमता हमारे समाज में विकसित नहीं हुई है और इसके लिए Conclude करने की जरूरत पड़ती है ताकि किसी को कोई संदेह ना रहे और सारी बातें ठीक तरह से साफ हो जाये। हमारा समाज भोजन के लिए ही सब कुछ करता है। हमारे आदमी को दो खुराकों की जरूरत है एक पेट की, दूसरी दिमाग की। लेकिन हमारे आदमी को पेट की खुराक मिलने के बाद दिमाग की खुराक की जरूरत ही नहीं पड़ती, इसका मतलब हुआ कि हमारा स्तर जानवर के बराबर का है, जिसको पेट की खुराक काफी है। दुश्मनों ने (ब्राह्मणवाद) हमें पहले इंसानों के लेवल से गिराकर जानवर के लेवल पर लाया है और उसके बाद ही उन्होंने हमारे साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया और हमें उसका अहसास भी नहीं हुआ। क्योंकि हमारा लेवल ही उन्होंने जानवर का बना दिया था।
अंग्रेज आने के बाद जो पढ़ाई का मौका ज्योतिबा फुले और बाबासाहब को मिला, उसके बाद हमारे लोगों को अहसास हुआ कि हम तो इंसान हैं और हमारे साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। इसीलिए हमारे समाज को दिमाग के खुराक की बहुत जरूरत है, जो हमारे समाज को मुक्त करने का काम करेगी। कुछ लोग कहते हैं कि पेशा गलत नहीं होता है। अगर विदेश में कोई उच्च जाति के लोग सफाई का काम करते हैं तो भारत में भी बहुत सारे ब्राह्मण जूते बेचने का तथा मैला की इंडस्ट्री (सुलभ शौचालय) बनाने का काम करते हैं। लेकिन ऐसा करने से ब्राह्मण नीचे नहीं आता या हम ऊपर नहीं जाते। पूरे भारत में सफाई का काम सिर्फ अनुसूचित जाति के लोग ही करते हैं। क्योंकि ब्राह्मणों को उनके द्वारा बनाई गई वर्णव्यवस्था में ऐसा लिखा है। पंजाब में २० लाख अनु०जाति के लोगों में से सिर्फ २० हजार लोग ही सफाई का काम करते हैं लेकिन सभी २० लाख लोगों को उसी नीचता के दृष्टिकोण से देखा जाता है। तो हमें इस बारे में एक दृष्टिकोण बनाना पड़ेगा क्योंकि अगर ब्राह्मण नीचता का काम करता है तो भी वह ब्राह्मण ही रहता है। यानी कोई उसे भंगी या चमार नहीं कहता और हम सफाई का काम नहीं करते फिर भी हमें भंगी कहा जाता है। समस्या को आयडेंटीफाय करे बगैर समस्या का समाधान संभव नहीं है।
जो अल्पसंख्यक ब्राह्मण हैं वो जानते हैं कि मूलनिवासी बहुसंख्यक को शारीरिक गुलाम नहीं बनाया जा सकता। इसीलिए उन्होंने हमारे दिमाग पर कब्जा किया हुआ है। हमारे आदमी इस काम को गलत नहीं मानते बल्कि उसे enjoy करते हैं। इसके बारे में बाबासाहब कहते हैं कि अगर आप किसी भी व्यक्ति, समूह या समाज में परिवर्तन लाना चाहते हो तो पहले उसके सोच में परिवर्तन लाओ, इसका मतलब अगर आपको अपने बहु-बेटियों को दूसरे के घरों में सफाई का काम करने से रोकना है तो पहले उनकी सोच में परिवर्तन लाना पड़ेगा। वाल्मीकि जाति की हजारों समस्या है और इसमें सबसे पहले दिमागी समस्या है और जब तक यह ठीक नहीं होती तब तक हमारा आदमी दुश्मन का काम करते रहेगा। scene of priority में हम गलती करते हैं और यही पर सब चौपट होता है। यही से आंदोलन का काम शुरू होता है जो Priority को समझता है। ब्राह्मण को आप पूछो कि आपको भगवान चाहिए या वर्ण व्यवस्था तो वो वर्ण व्यवस्था कहेगा। इसका मतलब ये हुआ कि उसके लिए भगवान की कोई अहमियत नहीं है वो सिर्फ दिखावा करता है, ब्राह्मण को मालूम है कि जब वो व्यवस्था के आधार पर ही सारे समाज पर राजकर सकता है तो उसे भगवान की क्या जरूरत है और इसीलिए अगर हमें इससे मुक्ति पानी है तो हम अपना हमले का लक्ष्य भगवान नहीं बल्कि वर्ण व्यवस्था की तरफ करना चाहिए। युद्ध शास्त्र के नियम के अनुसार आपको अपने दुश्मन को कमजोर करना चाहिए या तो उसकी सर्वोत्तम कमजोरी ढूंढकर उस पर हमला करना चाहिए। तभी आपकी विजय की संभावना है, ना कि उसके मजबूत स्तंभ पर। ठीक इसी तरह ब्राह्मण का मजबूत स्तंभ भगवान है और इसीलिए हमारे हमले के लक्ष्य में भगवान को दूर रखना चाहिए या उस पर हमला नहीं करना चाहिए। अगर आप भगवान पर हमला करोंगे तो उसका उल्टा असर होगा और वाल्मीकि ब्राह्मण के तरफ जा मिलेगा, गौतम बुद्ध भगवान के बारे में कहते हैं कि यह चर्चा के योग्य विषय नहीं है क्योंकि दुनियां में हुआ है और उसे दूर करने का रास्ता भी है। तो हमें उस पर काम करना चाहिए। ना कि भगवान के बारे में चर्चा करना चाहिए। बुद्धा जो सबसे विकसित बुद्धिवाले थे अगर उनके ऐसे विचार हैं तो हमें जरूर इससे कुछ सीखना चाहिए।
मानसिक गुलामी ब्राह्मणवादी व्यवस्था की उत्पत्ति है.
वाल्मीकी जातियों (अर्थात् सफाई काम करने वाली जातियों) की हजारो समस्यायें है। लेकिन उन हजारों समस्याओं को हमें क्रमवार लगाना होगा। जो ज्यादा अहमियत वाली समस्या है उसे पहले नम्बर का स्थान देना होगा, और इसी तरह से बाकी सारी समस्याओं को क्रमवार लगाकर उनका निवारण करना होगा। सबसे पहली नम्बर की समस्या यह है कि हम दूसरों पर निर्भर हैं। हम हमेशा यह चाहते हैं कि हमारी समस्या दूसरे हल करें। दूसरों पर निर्भर रहने की वजह से ही आजादी के 74 साल तक हमारा सत्यानाश होता रहा। इसीलिए आज हम यह सोच रहे हैं कि हमारी समस्याओं का समाधान हम करने लायक बनना चाहते है, तो हमे आज यह घोषित करना होगा कि आज की तारीख में हम नालायक हैं। इसीलिए लायक बनना हमारी सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिये। किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए ताकत और शक्ति की जरुरत होती है। ताकत और शक्ति का अहसास तभी होगा, जब हम अपने आधार पर अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करेंगे। इसीलिए हमारा सबसे पहला काम अपने समाज को जागृत कर संघटित करना होगा। मानसिक गुलामी विचारधारा की उत्पत्ति है, परिणाम है। ज्यादातर हमारे समाज के कम बुद्धिवाले लोग समस्याओं पर चर्चा करते हैं। उनके बोलने के बावजूद भी कोई बुद्धिजीवी समस्याओं के समाधान पर चर्चा करने के लिये तैयार नहीं है। यह जो मानसिक गुलामी यह ब्राह्मणवाद ने निर्माण की है, वह ब्राह्मणवादी विचारधारा अमूर्त है। इसको चाकू छुरी से खत्म नहीं किया जा सकता। इसको विचारधारा से ही काटना होगा लेकिन समस्या यह है कि हमारे लोगों को मानसिक गुलामी का विश्लेषण ही नहीं हो पाता। उनके पास इसका इलाज ही नहीं है। वरना जो दवा हमारे पुरखों ने सालों से बनाकर रखी है, वह दवा मरीज तक नहीं पहुँच पा रही है। बाबासाहब ने संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसीलिये रखा कि हमारे समाज का प्रतिनिधित्व हर क्षेत्र में हो। मगर हमारे बुद्धिजीवियों को आरक्षण की समझ ही नहीं है। हमारे बुद्धिजीवियों की एक और समस्या है कि वह अपनी बात ज्यादा देर तक सुनाना चाहता है, मगर सुनने के लिये तैयार नहीं है। अपनी बात कहकर सभा सम्मेलनों से वह चला जाता है, सुनने के लिये बिल्कुल नहीं बैठता है। इसीलिये अभी हमारे लोग सुनाने लायक नहीं बने । सुनाने लायक बनने के लिये सबसे पहले सुनने वाला बनना बहुत आवश्यक है। सुनने से जानकारी बढ़ेगी, ज्ञान बढ़ेगा। हमारे लोगों में पुर्वानुमान करने की शक्ति नहीं है। किसी भी बात को सुनने का क्या प्रभाव हो सकता है, यह जब तक हमारे लोगों को पुर्वानुमान करना नहीं आयेगा, तब तक वह समाज का नेतृत्व करने लायक नहीं बन सकता। हमारे समाज को माँगने वाले से छिननेवाला समाज बनना है। छिननेवाला बनने के लिये शक्ति का निर्माण करना होगा। और शक्ति का निर्माण करने के लिये संघटन का निर्माण करना होगा। ब्राह्मणवादी लोगों ने अनु० जाति के अंदर संख्या के आधार पर विभाजित करने का षड्यंत्र चल रहा है। वो हमारी शक्ति को विघटित करना चाहते है। डॉ० बाबासाहब ने सभी अछूत जातियों को अनुसूचित जाति के अन्दर समाहित किया था, लेकिन आंध्र और बाकी राज्यों में अनु० जाति को विभाजित कर संघटित शक्ति को विभाजित करने का षड्यंत्र चल रहा है। इसीलिये हमें हर षड्यंत्र को पहचानना होगा और दुश्मन की चालों को समझकर संघटन का निर्माण करना होगा। जिनकी जनसंख्या कम होगी वह माँगने का काम ज्यादा करेगी। जैसे जैसे ज्यादा संख्या में लोग इकट्ठा होते रहेंगे वैसे वैसे संघटन का निर्माण होगा और माँगनेवाले से देनेवाले बन सकते है।
जय मूलनिवासी 


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