जाति समाज नहीं है, बल्कि समाज को बांटने का हथियार है.वामन मेश्राम राष्ट्रीय अध्यक्ष -बामसेफ

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जाति समाज नहीं है, बल्कि समाज को बांटने का हथियार है.वामन मेश्राम राष्ट्रीय अध्यक्ष -बामसेफ
हमारे दुश्मनों ने १००० सालों से हमें गुलाम बनाके / रखने का निरंतर प्रयास किया। उन्होंने वर्णव्यवस्था के तहत ऐसा किया, उसके बाद जाति व्यवस्था उसके बाद अस्पृश्यता के तहत। इसी गुलामी का दूसरा कारण है कि ये जो  ७४ साल की आजादी है यह सिर्फ अफवाह है और यह अफवाह हमें सही में अफवाह ना लगे इसीलिए वो लोग १५ अगस्त को बड़े जोर-शोर से स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और उसका सीधा प्रसारण टीवी पर दिखाते हैं ताकि हमारे मूलनिवासी बहुसंख्यक को इस असलियत मालूम ना पड़े। Indian Human Right के अनुसार सिर पर कोई भी चीज ले के जाना यह खतरनाक है और ऐसे Activities Human के साथ नहीं की जाएगी, लेकिन खास तौर पर वाल्मीकि जाति के संर्दभ में देखा जाए तो ये लोग आज तक सिर पर मैला की टोकरी उठाते हैं। इससे साफ साबित होता है कि हमारा दुश्मन हमे Human ही नहीं मानता। यह आजादी हमारे लिए नहीं बल्कि यह अफवाह साबित करने के लिए पर्याप्त है। परंतु इस बात का हमें अहसास नहीं है और अहसास होने नहीं दिया है, वाल्मीकि जाति में मूल बीमारी जो बहुत ज्यादा लोगों में फैली है, वह यह है कि हर सार्वजनिक कार्य के लिए वे दूसरों पर निर्भर रहते हैं। ये जो दूसरों पर निर्भर रहने की सोच पहले से नहीं आई बल्कि लाई गयी और यह काम अपने समाज के दलाल और भड़वे पैदा करके जो कम पढ़े लिखे हैं उनको अपना नेता पेश किया गया। जिन्होंने यह निर्भर होने की बीमारी बहुत जोरों से फैलायी, जो हमारी आजादी के पहले नहीं थी। अपने को ये दूसरों से मांगने की आदत छोड़ देना पड़ेगा, इससे यह फायदा होगा कि हमें दूसरों पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं पड़ेगी, इसके लिए हमें अपने समाज में आत्मविश्वास पैदा करना पड़ेगा। संख्या के आधार पर देखा जाये तो मूलनिवासी बहुसंख्यक के पास शासक चुनने का अधिकार है। आत्मबल पैदा करने का काम निरंतर विचारधारा का प्रचार करने से होगा। जो समाज अपने समाज के परिवर्तन के लिए कीमत चुकाने के लिए तैयार है उस समाज को कोई गुलाम नहीं रख सकते। इस सम्मेलन में लोग अपने स्वेच्छा से खुदके जैसे आये, इसका मतलब वो समाज के परिवर्तन के लिए समाज और पैसा दोनों लगा रहे हैं, ब्राह्मणों ने हमारे विचारों को मर्यादित करके रखा है। बामसेफ वाल्मीकि जाति के विचारों में परिवर्तन लाने का काम करेगी ताकि उनका जीवन की तरफ देखने का नजरिया बदलेगा और जब ऐसा हो जाएगा तो आंदोलन में गति लाना आसान होगा।
हमारे लोगों में एक बहुत बड़ी कमजोरी है, कि वो बोलना चाहते हैं लेकिन सुनने के लिए तैयार नहीं इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उसे दिमाग के खुराक की जरूरत नहीं वो सिर्फ पेट की खुराक से ही संतुष्ट है। एक ही आदमी को बहुत सारे अनुभव नहीं हो सकते और इसीलिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया है। ताकि आप अलग-अलग स्टेट के व्यक्तियों से अलग-अलग अनुभव सुनें और समाज में जाकर इनका प्रचार करे। जो लोग यहां पर सुनना नहीं चाहते वो लोग समाज में सुनाना नहीं चाहते। इसीलिए वो लोग नहीं सुनना चाहते। जानकारी एक हथियार है और आज के जमाने में जो हमे लड़ाई लड़नी है उसमें सिर्फ जानकारी वाला हथियार ही काम कर सकता है। बाकि बिल्कुल नहीं। आज हमें मंच पर आकर लोगों को समझाने की जरूरत है नाकि भाषण की। क्योंकि अगर यहां से हमारे लोग समझेंगे तो ही वो समाज में जा के उनको समझा सकेंगे। बाबा साहब को किसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है वो महान थे, अक्सर देखा गया है कि लोग अपने भाषण में कहते हैं कि बाबा साहब महान थे। लेकिन अगर वो ये ना कहे तो इसका मतलब यह नहीं कि वो महान नहीं थे। बाबा साहब महान हैं और इसकी वजह भी है। बाबा साहब कहते हैं कि जिसके लिए मैंने लड़ाई संघर्ष किया वो करो। ऊँचे लोग निचली जाति के लोगों के खिलाफ जल्दी एकजुट होते इसका कारण वो लोग अपने कार्य के प्रति जाग्रत हैं। लेकिन निचली जाति के लोग ऊँची जाति के लोगों के विरूद्ध आसानी से एकजुट नहीं होते। इसके दो कारण हैं। नंबर १ हमे अपने दुश्मनों की पहचान नहीं है। हमे स्कूल में 'ग' गणपति का पाठ पढ़ाया गया लेकिन बामसेफ में यहा 'ब' बाबासाहब का पढ़ाती है, जो स्कूल के अभ्यास क्रम से भिन्न है इसलिए हमारे सभी आईएएस/आईपीएस और बड़े-बड़े अधिकारियों को भी इस ट्रेनिंग की जरूरत है।

हमारे लोगों को आंदोलन / जागृति का पहला सबक मालूम नहीं है। वो अपने दुश्मन को नहीं जानते इसका असर यह होता है कि वो दुश्मन के बाजू में खड़े दिखाई देते हैं। नहीं तो उनके बहकावे में आ जाते हैं। इसीलिए हमे जब भी मौका मिले अपने दुश्मन को हाईलाईट करते रहना चाहिए। ताकि हमें हमारा लक्ष्य पता रहे। बाबा साहब ने हमें वोट का अधिकार दिया है। जिसका उपयोग हमारे दुश्मन करते हैं। दुश्मन हमारे बीच दलाल और भड़वे पैदा करते हैं जिसे हम अपना नेता मानते हैं। हमें अपना आत्म बल और विश्वास बढ़ाना है। तो अपनी संख्या बढ़ाते जाओ। इसीलिए मैं वाल्मीकि जाति का अलग संगठन हो इसका विरोध करता हूँ। जाति समाज नहीं है बल्कि समाज को बांटने का हथियार है हम जाति को ही समाज मान लेते हैं। इसीलिए हम आगे नहीं बढ़ पाते। बाबा साहब कहते हैं कि जाति का विनाश करो। इस सम्मेलन के बाद इसका एक राष्ट्रीय संगठन बनाया जायेगा।

जय मूलनिवासी 

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