आखिर कैसे हुआ ये सब? कैसे आया हिंदू कोड बिल?

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*डॉ. अम्बेडकर ने लिखी थी हिंदू महिलाओं की किस्मत जो सबसे बड़ी क्रांति  कहलाती।*
     भारत में जब भी महिलाओं की आजादी, हक या अधिकारों की बातें होती हैं तो ना जाने किस-किस का नाम लिया जाता है। तमाम बहादुर महिलाओं, वीरांगनाओं, लेखिकाओं और अपने अपने क्षेत्र में कामयाबी का परचम लहराने वाली महिलाओं को याद किया जाता है। नहीं याद किया जाता तो उस डा. भीमराव अम्बेडकर को जिसका योगदान आजाद भारत में इस दिशा में शायद सबसे ज्यादा है। किसी भी पीढ़ी के व्यक्ति से बात करिए या फिर किसी भी पार्टी के नेता से बात करिए तो वो संविधान बनाने में डा. अम्बेडकर का योगदान तो बताएगा लेकिन महिलाओं के हक की लड़ाई में उनकी चर्चा नहीं करेगा। जबकि आजाद भारत में पैदा हुई हर महिला को उनका आभारी होना चाहिए, कम से कम हिंदू महिलाओं को तो।

खासकर हिंदू महिलाओं का जिक्र और इस बात पर जोर इसलिए क्योंकि डॉ. अम्बेडकर ना होते तो हिंदू कोड बिल आता ही नहीं, शायद कोई सोचता भी नहीं जिसके जरिए भारतीय महिलाओं को इतने अधिकार मिले थे, जैसे—तलाक का अधिकार, दूसरी शादी करने का अधिकार, विधवा पुनर्विवाह का अधिकार, पिता या पति की सम्पत्ति में हिस्से का अधिकार, तलाक के बाद मेंटीनेंस पाने का अधिकार आदि। हिंदू महिलाओं की जिंदगी में क्रांति लाने वाला ये बिल डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने तैयार किया था और अगर नेहरू दवाब में नहीं आए होते तो अम्बेडकर के सारे प्रावधान लागू होते और महिलाओं को और भी ज्यादा अधिकार मिले होते। इसी तरह अगर नेहरू की सरकार ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भी बात मानी होती तो उसी वक्त मुस्लिम महिलाओं को भी ये अधिकार मिल गए होते, जो आज तक ट्रिपल तलाक जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं।
 
आखिर कैसे हुआ ये सब? कैसे आया हिंदू कोड बिल? किस-किस ने किया विरोध और क्यों किया विरोध? किसने घेरी संसद? क्यों देना पड़ा कानून मंत्री पद से डा. अम्बेडकर को इस्तीफा? क्यों लड़े वो निर्दलीय चुनाव? क्यों नेहरू ने चुनाव जीतने के लिए किया बिल में संशोधन का वायदा? क्यों दी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने नेहरू को इस्तीफे की धमकी? इन्हीं सवालों के जवाब में छुपी है आजाद भारत में महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई की पूरी कहानी। सोचिए, जब इन सवालों में छुपा हुआ ये घटनाक्रम ही इतना हैरतअंगेज लगता है तो वाकई में क्या ये सब इतना आसान होगा? पूरे आठ साल लग गए इस लड़ाई में, तब जाकर महिलाओं को मिल पाए थे ये अधिकार वो भी टुकड़ों-टुकड़ों में।
 
आसान भी नहीं था, सदियों से जो हिंदू समाज तमाम स्मृतियों के सहारे अपने कानून चलाता आया है, भले ही उन्हें कोई मानता नहीं था, हर जाति-समाज की अपनी परम्पराएं थी। वेदों तक मे जिक्र है कि महिलाएं श्रषि होती थीं, शास्त्रार्थ करती थीं, हल चलाती थीं या फिर वैद्य या शिक्षक जैसे व्यवसायों में थीं, ऐसे में विदशियों के आक्रमण और जाति व्यवस्था के मजबूत होने से महिलाओं की स्थिति में गिरावट आती चली गई. परदादारी, घूंघट, बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियां हिंदुओं में आ गईं। राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने बड़े प्रयास किए, लेकिन आजादी तक उनकी स्थिति में भी कोई खास बदलाव नहीं था। ऐसे में नेहरू की पहल पर जब डॉ. अम्बेडकर ने हिंदू कोड बिल का ड्राफ्ट रखा, वो भी आजादी मिलने के चार साल बाद ही तो कुछ लोगों ने सवाल उठाए। हालांकि 1948 में भी संविधान सभा के सामने ये बिल रखा गया था, तब भी खासा विरोध हुआ था।
 
पहला सवाल ये कि ये चुनी हुई सरकार नहीं थी, इसको कोई बड़ा फैसला लेने का अधिकार नहीं था. दूसरे हिंदुओं के निजी मामले में सरकार नहीं बोल सकती थी. तीसरा और अहम सवाल जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ये उठाया कि जब आप अच्छी नीयत से महिलाओं को अधिकार देने के लिए इस बिल को ला रहे हैं तो केवल हिंदू धर्म की महिलाओं को ही क्यों? क्यों नहीं यही अधिकार बाकी धर्मों की महिलाओं को भी मिले. उनका मानना था कि सरकार की बाकी धर्मों के मामले में ये बड़ा फैसला खुद तय करने की हिम्मत ही नहीं है, यहीं से समान नागरिक संहिता या यूनीफॉर्म सिविल कोड की मांग उठी थी।

नेहरू ने भले ही इस मामले पर कभी सीधे बात नहीं की, लेकिन डा. अम्बेडकर ने उस वक्त कहा था कि हम शुरूआत भले ही हिंदू धर्म से कर रहे हैं, लेकिन बाद में अन्य धर्मों के निजी कानूनों में भी सुधार के लिए बिल लाए जा सकते हैं। कांग्रेस के भी तमाम सांसद इस मामले में नेहरू के विरोधी थे, यहां तक कि संविधान सभा के अध्यक्ष डां राजेन्द्र प्रसाद भी, जो तब तक राष्ट्रपति चुने जा चुके थे। उनका मानना था कि इससे बहुसंख्यक हिंदू नाराज हो जाएंगे, उन्होंने इतना तक कह दिया कि मैं इस बिल पर हस्ताक्षर करने से पहले इस्तीफा देना बेहतर समझूंगा। डॉ. अम्बेडकर भी नेहरू से खुश नहीं थे क्योंकि नेहरू अपनी ही पार्टी के लोगों को बिल के पक्ष में राजी नहीं कर पा रहे थे, जबकि डा, अम्बेडकर उस वक्त नेहरू की केबिनेट में ही कानून मंत्री थे। डा. अम्बेडकर के एक नेहरू विरोधी-कांग्रेस विरोधी बयान पर नेहरू ने अम्बेडकर को एक कड़ा खत भी उन दिनों लिखा था।
 
इधर उस दौर में बाबा रामदेव की तरह की सक्रिय एक बडे संत और शंकराचार्य के शिष्य हिंदू कोड बिल बनाने की बात पर सरकार से खासे नाराज हो गए। उन्होंने नेहरू को खुली चुनौती दी कि वो शास्त्रों के आधार पर ये साबित करेंगे कि जो अधिकार आप इस हिंदू कोड बिल के जरिए देने जा रहे हैं, वो शास्त्रों में हिंदू महिलाओं को पहले से ही दिए गए हैं और विवाह विच्छेद या तलाक का हिंदुओं में कोई प्रावधान ही नहीं है, बहुविवाह पर उनका मानना था कि शास्त्रों में बहुविवाह किसी विशेष परिस्थिति में ही मान्य है। उन्होंने पूरे देश में आंदोलन छेड़ दिया, इधर डॉ. अम्बेडकर ने मनु स्मृति, पाराशर स्मृति जैसे ही तमाम हिंदू ग्रंथों के हवाले से ही महिलाओं को अधिकार देने की बात कही। संसद में भी इसको लेकर हंगामा होता रहा. जब ये बहस अंदर चल रही थी तो करपात्री महाराज ने हजारों लोगों के साथ संसद को बाहर से घेर लिया था। डॉ. अम्बेडकर पर भारी दवाब था कि वो इसको संशोधित करें, कुछ नर्म नियम लाएं लेकिन डॉ. अम्बेडकर अपने बिल में कोई भी तब्दीली या संशोधन करने को तैयार नहीं थे।

अम्बेडकर ने इसलिए धर्मशास्त्रों के आधार पर ही तर्क रखे कि ये सुधार, ये बिल क्यों जरूरी है और वो कॉमन सिविल कोड के पक्ष में थे, लेकिन शुरूआत हिंदू धर्म से ही होनी चाहिए। जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने बिल के विरोध में नेहरू को कड़ा खत लिखा तो नेहरू ने भी जवाब में लिखा, कि इसे वापस लेने से कांग्रेस की प्रतिष्ठा खराब होगी, विदेशों में भी हमारी बदनामी होगी। लोगों ने ये तक आरोप लगाए कि अम्बेडकर जानबूझकर हिंदुओं के खिलाफ ये बिल लाकर साजिश की है, वो अपने विरोधियों से बदला लेना चाहते हैं। इधर जब से नेहरू ने अम्बेडकर के एक भाषण पर खत लिखकर उनसे नाराजगी जताई थी, इस भाषण में अम्बेडकर ने सरकार, पीएम और कांग्रेस सभी पर सवाल उठाए थे, तभी से दोनों ही इस बिल पर एक साथ होने के वाबजूद उनमें मतभेद थे. ऐसे में लोगों को बिल पास होने पर काफी शंका थी।
 
ऐसे में डॉ. अम्बेडकर के एक भाषण ने आग में घी का काम किया, मई 1951 में दिल्ली में हुए राजदूतों के एक सम्मेलन में डॉ. अम्बेडकर ने खुलकर हिंदू धर्म की कुरीतियों की आलोचना कर दी और बौद्ध धर्म अपनाने पर जोर दिया. लोगों को लगा जो व्यक्ति खुद हिंदू रहने में शर्म महसूस करता है, वो क्या उस धर्म का भला करेगा? संसद के अगले सत्र सितम्बर में होने से ठीक एक महीने पहले यानी 10 अगस्त 1951 को डॉ. अम्बेडकर ने नेहरूजी को एक खत लिखा और अपनी खराब तबियत का हवाला देकर फिर से हिंदू कोड बिल लाने के लिए दवाब डाला। उनको खबर थी कि नेहरू दवाब में इस बिल को ठंडे बस्ते में डाल सकते हैं। इधर देश का पहला आम चुनाव सर पर था, नेहरू ने फिर चर्चा की, तो कांग्रेस के ज्यादातर सांसद इसके विरोध में थे, उन्होंने संसद में खुलकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का साथ दिया। नेहरू ने वैसे भी कांग्रेस सांसदों के लिए व्हिप भी जारी नहीं किया था, इसलिए अम्बेडकर को शंका थी, करपात्री महाराज अलग संसद घेरे पड़े थे।
 
आखिरकार नेहरू थोड़े झुक गए, उस बिल को चार हिस्सों में बांट दिया। डॉ. अम्बेडकर नाराज थे, लेकिन फिर भी वो मान गए, बीस सितम्बर को उनका भाषण हुआ, काफी विरोध उनको झेलना पड़ा, यहां तक अपने कानून मंत्री का कांग्रेस के सांसदों ने भी उनका खुलकर विरोध किया। अब नेहरू फिर पीछे हटते दिखे और 26 सितम्बर 1951 को संसद में ऐलान किया, और बिल को दो हिस्सों में बांटने का ऐलान किया। उन्होंने चुनाव तक रुकने की बात कही और उस सत्र में हिंदू कोड बिल पर चर्चा टाल दी। अम्बेडकर को सपना बिखरता सा लगा, दिलचस्प बात ये थी कि तब आज की तरह महिला संगठन नहीं थे वरना डॉ. अम्बेडकर के साथ वो तो खड़े होते। उनको बिल ना पास होने से अंदर तक धक्का लगा और गुस्से में डॉ. अम्बेडकर ने देश के पहले कानून मंत्री की पोस्ट से इस्तीफा दे दिया। महिला अधिकारों के लिए ये बड़ा बलिदान था। हालांकि करपात्री महाराज जैसे सनातनी हिंदुओं ने आंदोलन वापस ले लिया था, नेहरू की मुसीबतें टल गई थीं।
डॉ. अम्बेडकर को इस्तीफा देने के बाद संसद में भाषण तक नहीं करने दिया गया, राज्यसभा के डिप्टी चेयरमेन ने उनसे स्टेटमेंट लिखित में मांगा, अम्बेडकर गुस्सा हो गए और फौरन बाहर निकल गए। बाहर प्रेस के लोगों को अपने इस्तीफे का लैटर बांट दिया। उसमें लिखा था कि, ‘’पीएम के कहने पर मैं बिल से शादी और तलाक का हिस्सा इसलिए अलग करने पर राजी हो गया क्योंकि मुझे लगा कि कम से कम कुछ तो हो रहा है, लेकिन पीएम ने जिस तरह दो दिन की बहस के बाद उसे भी पास होने से रोक दिया गया, मैं बिलकुल हैरान रह गया, बिल की तो हत्या कर दी गई। पीएम में उस बिल को लागू करने का साहस नहीं दिखा। मैं ये मानने को तैयार नहीं हूं कि समय की कमी के चलते शादी और तलाक बिल पास नहीं हो पाया। सामाजिक असमानता और पुरुष-महिला की गैरबराबरी हिंदू समाज के जड़ में है, इसको हाथ ना लगाना और आर्थिक असमानता दूर करने के लिए कानून बनाते जाना गोबर के ढेर पर महल खड़ा करने जैसा है। मेरे लिए हिंदू कोड बिल इतना अहम था कि मैं मतभेदों के वाबजूद मंत्रिमंडल में बना रहा।
 
इस पत्र के बाद नेहरू पर काफी दवाब बढ़ गया था, संविधान रचने वाले डॉ. अम्बेडकर कांग्रेस से किनारा कर गए थे. लेकिन वो चुनावों की तैयारी में लग गए, फूलपुर से उनके खिलाफ भी एक संन्यासी खड़ा हो गया- प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, मुद्दा केवल एक था हिंदू कोड बिल। जनसंघ और हिंदू महासभा ने भी प्रभुदत्त को ही समर्थन दे दिया. प्रभुदत्त का कैम्पेन का तरीका अनोखा था, ना कोई रैली, ना कोई भाषण, सिर्फ साधुओं का भजन-नृत्य और एक परचा, जिसमें लिखा होता था- नेहरू या तो साबित करें कि हिंदू कोड बिल हिंदुओं के पक्ष में हैं या फिर वापस लें। पूरे कैम्पेन में प्रभुदत्त ने एक शब्द नहीं बोला। नेहरू के विरोध में पहले ही चुनाव में जबरदस्त माहौल बनने लगा था, नेहरू के करीबियों ने उनको समझाया. हवा के रुख को भांपकर चुनाव से ठीक पहले नेहरू को भी नरम होना पड़ा, नेहरू ने ऐलान किया कि हिंदू कोड बिल में कुछ बदलाव होंगे तब वो पेश होगा, और उसके बाद वो जीत गए।
 
लेकिन अम्बेडकर ने बड़ी कीमत चुकाई, वो नेहरू की तरह झुकने को तैयार नहीं थे, कांग्रेस छोड़ चुके थे, इसलिए निर्दलीय चुनाव लड़े और हार गए। नेहरू सत्ता में चुनकर वापस लौट आए थे और इस बार पूरी ताकत उनके पास थी। पूरे देश से 23 महिला सांसद चुनकर आई थीं, नेहरू ने दिमाग लगाया और उन महिला सांसदों को महिलाओं के लिए इस बिल में क्या अधिकार हैं, ये समझाया तो नेहरू को अब संसद में उन महिला सांसदों का भी सपोर्ट मिल गया था। अम्बेडकर अब ना सरकार में थे और ना कांग्रेस में वो, वो नेपथ्य में चले गए थे। हालांकि राज्यसभा सदस्य थे। नए कानून मंत्री एच वी पाटस्कर ने हिंदू कोड बिल पेश किया, लेकिन नेहरू की सलाह पर कई टुकड़ों में उसे पेश किया। 1955 से 1956 तक कुल चार बिल पेश कर दिए गए, जो पहले अम्बेडकर के हिंदू कोड बिल में शामिल थे। हिंदू मैरिज एक्ट, जिसमें तलाक, अर्न्तजातीय विवाह की इजाजत मिली तो एक से ज्यादा शादी पर रोक लगा दी गई, को 1955 में पास किया गया। 1956 में तीन एक्ट और पास किए गए जिनमें हिंदू सक्शेसन एक्ट, हिंदू एडोप्शन एंट मेंटीनेंस एक्ट और हिंदू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट भी लागू हो गए।
 
हिंदू महिलाओं की जिंदगी में इन चार कानूनों ने क्रांति ला दी, उन्हें सम्पत्ति का अधिकार मिला, तलाक और उसके बाद मेंटीनेंस का अधिकार मिला, लड़कियों को गोद लेने पर जोर दिया गया। उनकी जिंदगी मानो एकदम से बदल गई। ये सभी कानूनों का लाभ हिंदुओं के अलावा सिखों, जैनों और बौद्ध महिलाओं को भी मौका मिला। लेकिन मुस्लिम महिलाओं को नहीं मिल पाया, यहां तक कि आजादी के वक्त कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेबी कृपलानी तक ने सरकार को इस मुद्दे पर साम्प्रदायिक बना दिया। ऐसे में डॉ. अम्बेडकर का साफ कहना था कि ये केवल पहला चरण है, इसके बाद मुसलमानों के लिए भी बिल लाया जाएगा, लेकिन उसके बाद ना नेहरू ने सोचा और ना उनके बाद के कांग्रेस नेताओं ने हिम्मत दिखाई। लोगों का मानना है कि अम्बेडकर ज्यादा जीते और कानून मंत्री बने रहते तो शायद मुस्लिम महिलाओं को भी इस क्रांति का लाभ मिलता। इस मौके पर डॉ. बाबा साहब आंबेडकर के कार्य के आगे नत मस्तक होते हुए....
 ✍सभी मूलनिवासी बहनों को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हार्दिक हार्दिक मंगल कामनाएं!!!
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