भीमा कोरेगांव विजय दिवस: 500 महारों की ऐतिहासिक जीत ,गौरवशाली इतिहास की झलक

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भीमा कोरेगांव विजय दिवस

    भीमा कोरेगांव विजय दिवस

    गौरवशाली इतिहास: 500 महार सैनिकों की वीरता

1818 का ऐतिहासिक युद्ध

"मुठ्ठीभर लोग भी यदि संगठित होकर लड़ाई करें, तो जीत निश्चित होती है।" यह बात भीमा कोरेगांव विजय स्तंभ की कहानी से सिद्ध होती है।

क्या हुआ था 1818 में?

  • पेशवा की सेना: 30,000 ब्राह्मण सैनिक पुणे पर हमला करने जा रहे थे। पेशवा बाजीराव द्वितीय, जो मराठा साम्राज्य के प्रमुख थे, ने 30,000 सैनिकों के साथ पुणे पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।
  • महार सैनिक: 500 महारों ने 12 घंटे तक उनका सामना किया।इस बीच, कप्तान फ्रांसिस स्टॉन्टन के नेतृत्व में 500 सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी, जिसमें अधिकांश महार समुदाय के लोग शामिल थे, पुणे की तरफ ब्रिटिश सेना की मदद के लिए जा रही थी।
  • अंतिम परिणाम: पेशवा की सेना को पीछे हटना पड़ा।पेशवा की सेना ने इन 500 सैनिकों पर हमला किया, लेकिन महार सैनिकों ने 12 घंटे तक डटकर मुकाबला किया और पेशवा की विशाल सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

महार सैनिकों का योगदान

यह लड़ाई केवल ब्रिटिश सेना की मदद के लिए नहीं थी, बल्कि महार सैनिकों के आत्म-सम्मान और अस्मिता की लड़ाई भी थी।

पेशवा काल में महारों पर अत्याचार

  • नगर में प्रवेश: महारों को कमर में झाड़ू बांधकर चलना पड़ता था ताकि उनके पैरों के निशान मिट जाएं।
  • मिट्टी का मटका: गले में मटका लटकाना पड़ता था ताकि वे उसमें थूकें और ब्राह्मण 'अपवित्र' न हों।
  • पानी का भेदभाव: कुएं और पोखरों का पानी महारों के लिए वर्जित था।
  • विजय स्तंभ: एक गौरवशाली प्रतीक

    "1818 में हुई इस जीत के उपलक्ष्य में ब्रिटिश सरकार ने भीमा कोरेगांव में विजय स्तंभ का निर्माण कराया। यह स्तंभ उन महार सैनिकों की वीरता और बलिदान का प्रतीक है।"

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    निष्कर्ष भीमा कोरेगांव की यह घटना हमें सिखाती है कि संगठित और साहसी प्रयास बड़े से बड़े अन्याय के खिलाफ जीत दिला सकते हैं। #भीमा_कोरेगांव_विजय_दिन

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