भीमा कोरेगांव विजय दिवस: 500 मूलनिवासी बहुजन नायकों को श्रद्धांजलि

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भीमा कोरेगांव विजय दिवस: 500 मूलनिवासी बहुजन नायकों को श्रद्धांजलि

1818 के ऐतिहासिक युद्ध की कहानी

साल 1818 में, कोरेगांव भीमा के तट पर हुआ एक ऐसा ऐतिहासिक युद्ध जिसने भारत के सामाजिक इतिहास में नया अध्याय जोड़ा। 500 वीर मूलनिवासी बहुजन सैनिकों ने अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए 28,000 पेशवा सैनिकों को मात दी।

ब्रिटिश सेना ने 500 मूलनिवासी बहुजन नायकों की याद में 75 फीट ऊंचा विजय स्तंभ बनवाया, जिस पर 20 शहीदों और 3 घायल सैनिकों के नाम अंकित हैं। यह विजय स्तंभ मूलनिवासी बहुजन समाज की वीरता और संघर्ष का प्रतीक है।

हर साल उमड़ता है श्रद्धालुओं का जनसैलाब

हर साल 1 जनवरी काो, लाखों श्रद्धालु देशभर से भीमा कोरेगांव के इस विजय स्तंभ पर श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। "इस साल भी लाखों लोग विजय दिवस के मौके पर यहां इकट्ठा हुए।भारत मुक्ति मोर्चा और छत्रपति क्रांति सेना ने इस बार के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम समेत कई अन्य प्रमुख नेता और संगठन इस मौके पर उपस्थित रहे।

ब्रिटिश सेना और बहुजन योद्धाओं का संघर्ष

ब्रिटिश सेना की ओर से 500 बहुजन सैनिक इस युद्ध में लड़े, जिनका नेतृत्व जनरल कैप्टन फ्रांसिस एफ. स्टैंटन ने किया। दूसरी ओर, पेशवा बाजीराव द्वितीय के नेतृत्व में 28,000 सैनिक थे। पेशवा शासन के दौरान महार, मंग और अन्य अछूतों के साथ अत्याचार किया जाता था। उनके आत्मसम्मान की रक्षा के लिए बहुजन सैनिकों ने, अंग्रेजों के साथ मिलकर पेशवा की सेना के खिलाफ इस लड़ाई में विजय पाई।

बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर का योगदान

    1 जनवरी, 1927 को डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने इस विजय स्तंभ का दौरा कर इसे क्रांतिकारी संघर्ष का प्रतीक बताया। उनके प्रयासों के बाद, हर साल 1 जनवरी को लाखों अंबेडकर अनुयायी यहां आकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

    पेशवा शासन का कड़वा सच

    • पेशवा शासन के दौरान, बहुजनों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था:
    • महारों को सड़कों पर थूकने की इजाजत नहीं थी।
    • उनके गले में मटके लटकाए जाते और कमर पर झाड़ू बांधनी पड़ती थी।
    • ब्राह्मणों की छाया से बचने के लिए उन्हें जमीन पर मुंह के बल लेटने को मजबूर किया जाता था।
    • इन अपमानजनक परंपराओं के खिलाफ मूलनिवासी महार योद्धाओं ने आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ी।

    विजय स्तंभ का महत्व

    कोरेगांव भीमा विजय स्तंभ, बहुजन समाज की वीरता और संघर्ष का जीवंत प्रतीक है। यह हमें न केवल इतिहास की याद दिलाता है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के प्रति जागरूक भी करता है।
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    जय भीम! जय मूलनिवासी!

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