ब्राह्मणवाद का खेल: एससी, एसटी, ओबीसी, कुनबी और मराठा के अधिकारों पर खतरा
समाज के अधिकारों पर सवालिया निशान
भारत की राजनीति और सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणवाद का प्रभाव हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। ब्राह्मणों का एससी, एसटी, ओबीसी, और मराठा समुदाय के अधिकारों में हस्तक्षेप करना समाज के अन्य वर्गों के लिए बड़ी चिंता का कारण है। "जब एससी, एसटी, ओबीसी, कुनबी और मराठा को हिंदू कहा जाता है, तो ब्राह्मण सत्ता और अधिकार के केंद्र में आ जाते हैं।"
जाति आधारित आरक्षण का महत्व
आरक्षण के माध्यम से एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों को संवैधानिक अधिकार मिले हैं। लेकिन जब इन वर्गों को एकसाथ "हिंदू" के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो उनके अधिकार कमजोर हो जाते हैं। एससी के अधिकार: शेड्यूल्ड कास्ट के नाम पर मिले अधिकारों में ब्राह्मण हस्तक्षेप नहीं कर सकते। ओबीसी के अधिकार: ओबीसी के नाम पर मिले लाभ ब्राह्मणों के लिए आरक्षित नहीं हैं। लेकिन, हिंदू पहचान के तहत इन समुदायों के अधिकारों का केंद्रीकरण ब्राह्मणों के पक्ष में हो जाता है।
हिंदू धर्म के नाम पर शोषण
ब्राह्मणों द्वारा हिंदू धर्म की परिभाषा को इस तरह गढ़ा गया है कि सभी समुदाय उनके नेतृत्व को स्वीकार कर लें। एससी, एसटी, ओबीसी, कुनबी, और मराठा: ये समुदाय सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ब्राह्मणवादी एजेंडा: सत्ता में बने रहने के लिए सभी को "हिंदू" कहकर उनकी व्यक्तिगत पहचान खत्म करने की साजिश।
समाधान क्या है?
- 1. अपनी पहचान बचाएं: एससी, एसटी, ओबीसी, कुनबी और मराठा को अपनी जातीय पहचान और अधिकारों को स्पष्ट करना होगा।
- 2. समानता और न्याय की मांग: ब्राह्मणों के नेतृत्व में जाने के बजाय अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर संघर्ष करें।
- 3. सामाजिक एकता: इन सभी वर्गों को जाति-पांत से ऊपर उठकर अपने अधिकारों के लिए संगठित होना होगा।ा
निष्कर्ष
"एससी, एसटी, ओबीसी, कुनबी और मराठा को हिंदू कहने का मतलब है कि उनके अधिकारों पर कब्जा करके ब्राह्मणों को सशक्त बनाना।" इस सोच से बचने के लिए समाज के इन वर्गों को अपनी पहचान और अधिकारों के लिए जागरूक होना होगा।